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अनुगम निरूपण
४३७ उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम- उद्देश आदि की व्याख्या करके सूत्र की व्याख्या करने को कहते हैं। गाथोक्त क्रमानुसार सामायिक के माध्यम से इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
१. उद्देश- सामान्य रूप से कथन करने को उद्देश कहते हैं। जैसे—'अध्ययन'। २. निर्देश- उद्देश का विशेष नामोल्लेखपूर्वक अभिधान-कथन निर्देश कहलाता है। जैसे—सामायिक।
३. निर्गम- वस्तु के निकलने के आधार—स्रोत का कथन निर्गम है। जैसे—सामायिक कहां से निकली ? अर्थत: तीर्थंकरों से और सूत्रतः गणधरों से सामायिक निकली।
४. क्षेत्र- किस क्षेत्र में सामायिक की उत्पत्ति हुई ? सामान्य से समयक्षेत्र में और विशेषापेक्षया पावापुरी के महासेनवनोद्यान में।
५. काल-किस काल में सामायिक की उत्पत्ति हुई ? वर्तमान काल की अपेक्षा वैशाख शुक्ला एकादशी के दिन प्रथम पौरुषीकाल में उत्पत्ति हुई।
६. पुरुष-किस पुरुष से सामायिक निकली ? सर्वज्ञ पुरुषों ने सामायिक का प्रतिपादन किया है, अथवा व्यवहारनय से भरतक्षेत्र की अपेक्षा इस अवसर्पिणी काल में सर्वप्रथम भगवान् ऋषभदेव ने और वर्तमान में जिनशासन की अपेक्षा श्रमण भगवान् महावीर ने सामायिक का प्रतिपादन किया है। अथवा अर्थ की अपेक्षा सामायिक का प्रतिपादन भगवान् महावीर ने और सूत्र की अपेक्षा गौतमादि गणधरों ने प्रतिपादन किया।
७. कारण- किस कारण गौतमादि गणधरों ने भगवान् से सामायिक का श्रवण किया ? संयतिभाव की सिद्धि के लिए।
८. प्रत्यय- किस प्रत्यय (निमित्त) से भगवान् ने सामायिक का उपदेश दिया और किस प्रत्यय से गणधरों ने उसका श्रवण किया? केवलज्ञानी होने से भगवान् ने सामायिकचारित्र का प्रतिपादन किया और भगवान् केवली हैं इस प्रत्यय से भव्य जीवों ने श्रवण किया।
.. ९. लक्षण सामायिक का लक्षण कहना। जैसे सम्यक्त्वसामायिक का लक्षण तत्त्वार्थ की श्रद्धा, श्रुतसामायिक का जीवादि तत्त्वों का परिज्ञान, चारित्रसामायिक का सर्वसावद्यविरति और देशचारित्रसामायिक का लक्षण विरत्यविरति (एकदेशविरति) है।
१०. नय— नैगमादि नयों के मत से सामायिक कैसे होती है ? जैसे—व्यवहारनय से पाठ रूप सामायिक और तीन शब्दनयों से जीवादि वस्तु का ज्ञानरूप सामायिक होती है।
११. (नय) समवतार— नैगमादि नयों का जहां समवतार—अन्तर्भाव संभवित हो, वहां उसका निर्देश करना। जैसे—कालिकश्रुत में नयों का समवतार नहीं होता है। किन्तु चरणकरणानुयोग आदि रूप चतुर्विध अनुयोगात्मक शास्त्रों की अपृथगावस्था में नयों का समवतार प्रत्येक सूत्र में होता है तथा इनकी पृथक् अवस्था में नयों का समवतार नहीं है। वर्तमान में आचार्यों ने सूत्रों के पृथक्-पृथक् रूप से चार अनुयोग स्थापित कर दिये हैं। जिनमें नयों का समवतार इस समय विच्छिन्न हो गया है।
१२. अनुमत—कौन नय किस सामायिक को मोक्षमार्ग रूप मानता है ? जैसे नैगम, संग्रह और व्यवहारनय