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________________ ४३५ अनुगम निरूपण णं णिक्खित्ते इहं णिक्खित्ते भवति इहं वा णिक्खित्ते तहिं णिक्खित्ते भवति, तम्हा इहं ण णिक्खिप्पइ तहिं चेव णिक्खिप्पिस्सइ । से तं निक्खेवे । [६०० प्र.] भगवन् ! सूत्रालापकनिष्पन्ननिक्षेप का क्या स्वरूप है ? [६०० उ.] आयुष्मन् ! इस समय (नामनिष्पन्ननिक्षेप का कथन करने के अनन्तर) सूत्रालापकनिष्पन्ननिक्षेप की प्ररूपणा करने की इच्छा है और अवसर भी प्राप्त है। किन्तु आगे अनुगम नामक तीसरे अनुयोगद्वार में इसी का वर्णन किये जाने से लाघव की दृष्टि से अभी निक्षेप नही करते हैं। क्योंकि वहां पर निक्षेप करने से यहां निक्षेप हो गया और यहां निक्षेप किये जाने से वहां पर निक्षेप हुआ समझ लेना चाहिए। इसीलिए यहां निक्षेप नहीं करके वहां पर ही इसका निक्षेप किया जायेगा। इस प्रकार से निक्षेपप्ररूपणा का वर्णन समाप्त हुआ। विवेचन— प्रस्तुत सूत्र में सूत्रालापकों का नाम आदि निक्षेपों में न्यास न करने का कारण स्पष्ट किया है। सूत्रों का उच्चारण अनुगम के भेद सूत्रानुगम में किया जाता है और उच्चारण किये बिना आलापकों का निक्षेप होता नहीं है। किन्तु वह भी निक्षेप का एक प्रकार है। यह बताने के लिए यहां उसका उल्लेख मात्र किया है। अनुगम निरूपण ६०१. से किं तं अणुगमे ? अणुगमे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—सुत्ताणुगमे य निजुत्तिअणुगमे य । [६०१ प्र.] भगवन् ! अनुगम का क्या स्वरूप है ? [६०१ उ.] आयुष्मन् ! अनुगम के दो भेद हैं। वे इस प्रकार—१. सूत्रानुगम और २. निर्युक्त्यनुगम। विवेचन— अनुगम-अधिकार की प्ररूपणा करने के लिए यह सूत्र भूमिका रूप है। अनुगम का लक्षण पूर्व में बताया जा चुका है। उसके दोनों भेदों के लक्षण इस प्रकार हैं सूत्रानुगम- सूत्र के व्याख्यान अर्थात् पदच्छेद आदि करके उसकी व्याख्या करने को सूत्रानुगम कहते हैं। निर्युक्त्यनुगम- नियुक्ति अर्थात् सूत्र के साथ एकीभाव से संबद्ध अर्थों को स्पष्ट करना। अतएव नाम, स्थापना आदि प्रकारों द्वारा विभाग करके विस्तार से सूत्र की व्याख्या करने की पद्धति को नियुक्त्यनुगम कहते हैं। अनुगम के इन दोनों भेदों में से सूत्रानुगम का वर्णन आगे सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति के प्रसंग में किये जाने से यहां पुनरावृत्ति न करके नियुक्त्यनुगम का निरूपण करते हैं। निर्युक्त्यनुगम ६०२. से किं तं निज्जुत्तिअणुगमे ? निजुत्तिअणुगमे तिविहे पण्णत्ते । तं जहा—निक्खेवनिजुत्तिअणुगमे उवघातनिज्जुत्तिअणुगमे सुत्तप्फासियनिज्जुत्तिअणुगमे । [६०२ प्र.] भगवन् ! नियुक्त्यनुगम का क्या स्वरूप है ? [६०२ उ.] आयुष्मन् ! नियुक्त्यनुगम के तीन प्रकार हैं। यथा—१. निक्षेपनियुक्त्यनुगम, २. उपोद्घात
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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