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________________ आय निरूपण ४२५ [५७० प्र.] भगवन्! कुप्रावचनिक-आय का क्या स्वरूप है ? [५७० उ.] आयुष्मन् ! कुप्रावचनिक आय भी तीन प्रकार की है। यथा—१. सचित्त, २. अचित्त, ३. मिश्र। इन तीनों का वर्णन लौकिक-आय के तीनों भेदों के अनुरूप जानना चाहिए यावत् यही कुप्रावचनिक आय है। ५७१. से किं तं लोगुत्तरिए ? लोगुत्तरिए तिविहे पण्णत्ते । तं जहा–सचित्ते अचित्ते मीसए य । [५७१ प्र.] भगवन् ! लोकोत्तरिक-आय का क्या स्वरूप है ? [५७१ उ.] आयुष्मन्! लोकोत्तरिक-आय के तीन प्रकार कहे गये हैं। यथा—१. सचित्त, २. अचित्त और ३. मिश्र। ५७२. से किं तं सचित्ते ? सचित्ते सीसाणं सिस्सिणियाणं आये । से तं सचित्ते । [५७२ प्र.] भगवन् ! सचित्त-लोकोत्तरिक-आय का क्या स्वरूप है ? [५७२ उ.] आयुष्मन् ! शिष्य-शिष्याओं की प्राप्ति सचित्त-लोकोत्तरिक-आय है। ५७३. से किं तं अचित्ते ? अचित्ते पडिग्गहाणं वत्थाणं कंबलाणं पायपुंछणाणं आए । से तं अचित्ते । [५७३ प्र.] भगवन् ! अचित्त लोकोत्तरिक-आय का क्या स्वरूप है ? [५७३ उ.] आयुष्मन् ! अचित्त पात्र, वस्त्र, पादपोंच्छन (रजोहरण) आदि की प्राप्ति को अचित्त लोकोत्तरिकआय कहते हैं। ५७४. से किं तं मीसए ? मीसए सीसाणं सिस्सिणियाणं सभंडोवकरणाणं आये । से तं मीसए । से तं लोगुत्तरिए, से तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वाए । से तं नोआगमओ दव्वाए । से तं दव्वाए । [५७४ प्र.] भगवन् ! मिश्र लोकोत्तरिक-आय किसे कहते हैं ? [५७४ उ.] आयुष्मन् ! भांडोपकरणादि सहित शिष्य-शिष्याओं की प्राप्ति-लाभ को मिश्र आय कहते हैं। यही लोकोत्तरिक-आय का स्वरूप है। इस प्रकार से ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्य-आय का वर्णन जानना चाहिए और इसके साथ ही नोआगमद्रव्य-आय एवं द्रव्य-आय की वक्तव्यता भी पूर्ण हुई। विवेचन- सूत्र संख्या ५५८ से ५७४ तक ओघनिष्पन्ननिक्षेप के तीसरे प्रकार आय का नाम, स्थापना और द्रव्य दृष्टि से विचार किया गया है। नाम, स्थापना और ज्ञायकशरीर तथा भव्यशरीर रूप द्रव्य आय का वर्णन तो द्रव्य-आवश्यक तक के इन्हीं भेदों के समान है। लेकिन ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्य-आय के वर्णन का रूप भिन्न है। क्योंकि प्रायः स्थूल दृश्य पदार्थों की प्राप्तिलाभ को आय माना जाता है और सामान्यतः प्राप्त करने योग्य अथवा प्राप्त होने योग्य पदार्थ सजीव अजीव और मिश्र अवस्था वाले होते हैं। उनके अपेक्षादृष्टि से लौकिक, कुप्रावचनिक और लोकोत्तरिक यह तीन-तीन भेद हैं । लौकिक आय का स्वरूप सूत्र में स्पष्ट हैं।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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