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२. कुप्राचनिक, ३. लोकोत्तर ।
५६६. से किं तं लोइए ?
लोइए तिविहे पण्णत्ते । तं जहा— सचित्ते अचित्ते मीसए य ।
अनुयोगद्वारसूत्र
[५६६ प्र.] भगवन्! (उभयव्यतिरिक्त) लौकिक द्रव्य आय का क्या स्वरूप है ?
[५६६ उ.] आयुष्मन्! लौकिक द्रव्य - आय के तीन प्रकार कहे गये हैं । यथा - १. सचित्त, २ . अचित्त और ३. मिश्र ।
५६७. से किं तं सचित्ते ?
सचित्ते तिविहे पण्णत्ते । तं जहा दुपयाणं चउप्पयाणं अपयाणं । दुपयाणं दासाणं, दासीणं, चउप्पयाणं आसाणं हत्थीणं, अपयाणं अंबाणं अंबाडगाणं आए । से तं सचित्ते ।
[५६७ प्र.] भगवन्! सचित्त लौकिक आय का क्या स्वरूप है ?
[५६७ उ.] आयुष्मन्! सचित्त लौकिक- आय के भी तीन प्रकार हैं । यथा—१. द्विपद-आय, २. चतुष्पदआय, ३. अपद-आय। इनमें से दास-दासियों की आय (प्राप्ति) द्विपद- आय रूप है। अश्वों (घोड़ों) हाथियों की प्राप्ति चतुष्पद - आय रूप और आम, आमला के वृक्षों आदि की प्राप्ति अपद-आय रूप है। इस प्रकार सचित्त आय का स्वरूप जानना चाहिए।
५६८. से किं तं अचित्ते ?
अचित्ते सुवण्ण- रयत-मणि- मोत्तिय संख - सिलप्पवाल - रत्तरयणाणं [संतसावएजस्स ] आये । से तं अचित्ते ।
[५६८ प्र.] भगवन्! (उभयव्यतिरिक्तलौकिक-आय के दूसरे भेद) अचित्त आय का क्या स्वरूप है ? [५६८ उ.] आयुष्मन् ! सोना-चांदी, मणि-मोती, शंख, शिला, प्रवाल (मूंगा) रक्तरन (माणिक) आदि (सारवान् द्रव्यों) की प्राप्ति अचित्त - आय है ।
५६९. से किं तं मीसए ?
मीसए दासाणं दासीणं आसाणं हत्थीणं समाभरियाउज्जलंकियाणं आये । से तं मीसए । सेतं लोइए ।
[५६९ प्र.] भगवन् ! मिश्र (सचित्त-अचित्त उभय रूप) आय किसे कहते हैं ?
[५६९ उ.] आयुष्मन्! अलंकारादि से तथा वाद्यों से विभूषित दास-दासियों, घोड़ों, हाथियों आदि की प्राप्ति को मिश्र आय कहते हैं।
इस प्रकार से लौकिक-आय का स्वरूप जानना चाहिए ।
५७०. से किं तं कुप्पावयणिए ?
कुप्पावयणिए तिविहे पण्णत्ते । तं जहा सचित्ते अचित्ते मीसए य । तिणि विहा लोइए, जाव से तं कुप्पावयणिए ।