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________________ ४२० अनुयोगद्वारसूत्र दव्वझीणे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—आगमतो य नोआगमतो य । । [५४९ प्र.] भगवन् ! द्रव्य-अक्षीण का क्या स्वरूप है ? [५४९ उ.] आयुष्मन् ! द्रव्य-अक्षीण के दो प्रकार हैं। यथा—१. आगम से, २. नोआगम से।, ५५०. से किं तं आगमतो दव्वज्झीणे ? आगमतो दव्वज्झीणे जस्स णं अज्झीणे त्ति पदं सिक्खितं ठितं जितं मितं परिजितं तं चेव जहा दव्वज्झयणे तहा भाणियव्वं, जाव से तं आगमतो दव्वझीणे । ५५० प्र.] भगवन् ! आगमद्रव्य-अक्षीण का क्या स्वरूप है ? [५५० उ.] आयुष्मन् ! जिसने अक्षीण इस पद को सीख लिया है, स्थिर, जित, मित, परिजित किया है इत्यादि जैसा द्रव्य-अध्ययन के प्रसंग में कहा है, वैसा ही यहां भी समझना चाहिए, यावत् वह आगम से द्रव्यअक्षीण है। ५५१. से किं तं नोआगमतो दव्वज्झीणे ? नोआगमतो दव्वज्झीणे तिविहे पण्णत्ते । तं जहा—जाणयसरीरदव्वज्झीणे भवियसरीरदव्वज्झीणे जाणयसरीरभवियसरीरवतिरित्ते दव्वज्झीणे । [५५१ प्र.] भगवन् ! नोआगम से द्रव्य-अक्षीण का क्या स्वरूप है ? [५५१ उ.] आयुष्मन्! नोआगमद्रव्य-अक्षीण के तीन प्रकार हैं। यथा—१. ज्ञायकशरीरद्रव्य-अक्षीण, २. भव्यशरीरद्रव्य-अक्षीण, ३. ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्य-अक्षीण। ५५२. से किं तं जाणयसरीरदव्वज्झीणे ? जाणयसरीरदव्वज्झीणे अज्झीणपयत्थाहिकारजाणयस्स जं सरीरयं ववगय-चुत-चइतचत्तदेहं जहा दव्वज्झयणे तहा भाणियव्वं, जाव से तं जाणयसरीरदव्वज्झीणे । [५५२ प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीरद्रव्य-अक्षीण किसे कहते हैं ? [५५२ उ.] आयुष्मन्! अक्षीण पद के अधिकार के ज्ञाता का व्यपगत, च्युत, च्यवित, त्यक्तदेह आदि जैसा द्रव्य-अध्ययन के संदर्भ में वर्णन किया गया है, उसी प्रकार यहां भी करना चाहिए यावत् यही ज्ञायकशरीरद्रव्य-अक्षीण का स्वरूप है। ५५३. से किं तं भवियसरीरदव्वज्झीणे ? __ भवियसरीरदव्वज्झीणे जे जीवे जोणीजम्मणनिक्खंते जहा दव्वज्झयणे, जाव से तं भवियसरीरदव्वज्झीणे । [५५३ प्र.] भगवन्! भव्यशरीरद्रव्य-अक्षीण किसे कहते हैं ? [५५३ उ.] आयुष्मन् ! समय पूर्ण होने पर जो जीव योनि से निकलकर उत्पन्न हुआ आदि पूर्वोक्त भव्यशरीरद्रव्य-अध्ययन के जैसा इस भव्यशरीरद्रव्य-अक्षीण का वर्णन जानना चाहिए, यावत् यह भव्यशरीरद्रव्यअक्षीण की वक्तव्यता है।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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