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अनुयोगद्वारसूत्र दव्वझीणे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—आगमतो य नोआगमतो य । । [५४९ प्र.] भगवन् ! द्रव्य-अक्षीण का क्या स्वरूप है ? [५४९ उ.] आयुष्मन् ! द्रव्य-अक्षीण के दो प्रकार हैं। यथा—१. आगम से, २. नोआगम से।, ५५०. से किं तं आगमतो दव्वज्झीणे ?
आगमतो दव्वज्झीणे जस्स णं अज्झीणे त्ति पदं सिक्खितं ठितं जितं मितं परिजितं तं चेव जहा दव्वज्झयणे तहा भाणियव्वं, जाव से तं आगमतो दव्वझीणे ।
५५० प्र.] भगवन् ! आगमद्रव्य-अक्षीण का क्या स्वरूप है ?
[५५० उ.] आयुष्मन् ! जिसने अक्षीण इस पद को सीख लिया है, स्थिर, जित, मित, परिजित किया है इत्यादि जैसा द्रव्य-अध्ययन के प्रसंग में कहा है, वैसा ही यहां भी समझना चाहिए, यावत् वह आगम से द्रव्यअक्षीण है।
५५१. से किं तं नोआगमतो दव्वज्झीणे ?
नोआगमतो दव्वज्झीणे तिविहे पण्णत्ते । तं जहा—जाणयसरीरदव्वज्झीणे भवियसरीरदव्वज्झीणे जाणयसरीरभवियसरीरवतिरित्ते दव्वज्झीणे ।
[५५१ प्र.] भगवन् ! नोआगम से द्रव्य-अक्षीण का क्या स्वरूप है ?
[५५१ उ.] आयुष्मन्! नोआगमद्रव्य-अक्षीण के तीन प्रकार हैं। यथा—१. ज्ञायकशरीरद्रव्य-अक्षीण, २. भव्यशरीरद्रव्य-अक्षीण, ३. ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्य-अक्षीण।
५५२. से किं तं जाणयसरीरदव्वज्झीणे ?
जाणयसरीरदव्वज्झीणे अज्झीणपयत्थाहिकारजाणयस्स जं सरीरयं ववगय-चुत-चइतचत्तदेहं जहा दव्वज्झयणे तहा भाणियव्वं, जाव से तं जाणयसरीरदव्वज्झीणे ।
[५५२ प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीरद्रव्य-अक्षीण किसे कहते हैं ?
[५५२ उ.] आयुष्मन्! अक्षीण पद के अधिकार के ज्ञाता का व्यपगत, च्युत, च्यवित, त्यक्तदेह आदि जैसा द्रव्य-अध्ययन के संदर्भ में वर्णन किया गया है, उसी प्रकार यहां भी करना चाहिए यावत् यही ज्ञायकशरीरद्रव्य-अक्षीण का स्वरूप है।
५५३. से किं तं भवियसरीरदव्वज्झीणे ? __ भवियसरीरदव्वज्झीणे जे जीवे जोणीजम्मणनिक्खंते जहा दव्वज्झयणे, जाव से तं भवियसरीरदव्वज्झीणे ।
[५५३ प्र.] भगवन्! भव्यशरीरद्रव्य-अक्षीण किसे कहते हैं ?
[५५३ उ.] आयुष्मन् ! समय पूर्ण होने पर जो जीव योनि से निकलकर उत्पन्न हुआ आदि पूर्वोक्त भव्यशरीरद्रव्य-अध्ययन के जैसा इस भव्यशरीरद्रव्य-अक्षीण का वर्णन जानना चाहिए, यावत् यह भव्यशरीरद्रव्यअक्षीण की वक्तव्यता है।