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अनुयोगद्वारसूत्र [५४३ उ.] आयुष्मन् ! पत्र या पुस्तक में लिखे हुए अध्ययन को ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्याध्ययन कहते हैं।
इस प्रकार नोआगमद्रव्याध्ययन का और साथ ही द्रव्याध्ययन का वर्णन पूर्ण हुआ।
विवेचन— सूत्र ५३८ से ५४३ तक छह सूत्रों में द्रव्याध्ययन का आशय स्पष्ट किया है। इन सबकी व्याख्या पूर्वोक्त द्रव्यावश्यक की वक्तव्यता के अनुसार यहां भी समझ लेना चाहिए। किन्तु आवश्यक के स्थान पर अध्ययन पद का प्रयोग किया जाये। इसी प्रकार आगे के विवेचन के लिए भी जानना चाहिए।
___ आगमद्रव्य-अध्ययन की नयप्ररूपणा में व्यवहार और संग्रहनय की दृष्टि का उल्लेख किया है, शेष नयदृष्टियों सम्बन्धी स्पष्टीकरण इस प्रकार है
नैगमनय की दृष्टि से जितने भी अध्ययन शब्द के ज्ञाता किन्तु अनुपयुक्त जीव हैं, उतने ही आगमद्रव्याध्ययन हैं। व्यवहारनय की मान्यता नैगमनय जैसी है। संग्रहनय की मान्यता एक या अनेक अनुपयुक्त आत्माओं को एक आगमद्रव्य-अध्ययन मानने की है। भेद को नहीं मानने से ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त आत्मा एक आगमद्रव्य-अध्ययन है। ज्ञायक यदि अनुपयुक्त हो तो तीनों शब्दनय उसे अवस्तु-असत् मानते हैं। क्योंकि ज्ञायक होने पर अनुपयुक्तता संभव नहीं है और यदि अनुपयुक्त हो तो वह ज्ञायक नहीं हो सकता है। भाव-अध्ययन
५४४. से किं तं भावज्झयणे ? भावज्झयणे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—आगमतो य णोआगमतो य । [५४४ प्र.] भगवन् ! भाव-अध्ययन का क्या स्वरूप है ?
[५४४ उ.] आयुष्मन् ! भाव-अध्ययन के दो प्रकार हैं—(१) आगमभाव-अध्ययन (२) नोआगमभावअध्ययन।
५४५. से किं तं आगमतो भावज्झयणे ? आगमतो भावज्झयणे जाणए उवउत्ते । से तं आगमतो भावज्झयणे । [५४५ प्र.] भगवन् ! आगमभाव-अध्ययन का क्या स्वरूप है ?
[५४५ उ.] आयुष्मन् ! जो अध्ययन के अर्थ का ज्ञायक होने के साथ उसमें उपयोगयुक्त भी हो, उसे आगमभाव-अध्ययन कहते हैं।
५४६. से किं तं नोआगमतो भावज्झयणे ? नोआगमतो भावज्झयणे
अज्झप्पस्साऽऽणयणं, कम्माणं अवचओ उवचियाणं ।
अणुवचओ य नवाणं, तम्हा अज्झयणमिच्छंति ॥ १२५॥ से तं णोआगमतो भावज्झयणे । से तं भावज्झयणे । से तं अज्झयणे । [५४६ प्र.] भगवन्! नोआगमभावाध्ययन का क्या स्वरूप है ?