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________________ अध्ययन निरूपण ४१७ [५४० प्र.] भगवन् ! नोआगमद्रव्य-अध्ययन का क्या स्वरूप है ? [५४० उ.] आयुष्मन् ! नोआगमद्रव्य-अध्ययन तीन प्रकार का कहा गया है। यथा—१. ज्ञायकशरीरद्रव्यअध्ययन, २. भव्यशरीरद्रव्य-अध्ययन, ३. ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यअध्ययन। ५४१. से किं तं जाणगसरीरदव्वज्झयणे ? जाणगसरीरदव्वज्झयणे अज्झयणपयत्थाहिगारजाणयस्स जं सरीरयं ववगत-चुत-चइयचत्तदेहं जाव अहो ! णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं अज्झयणे त्ति पदं आघवियं जाव उवदंसियं ति, जहा को दिलुतो ? अयं घयकुंभे आसी, अयं महुकुंभे आसी । से तं जाणयसरीरदव्वज्झयणे। [५४१ प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीरद्रव्य-अध्ययन किसे कहते हैं ? [५४१ उ.] आयुष्मन्! अध्ययन पद के अर्थाधिकार के ज्ञायक–जानकार के व्यपगतचैतन्य, च्युत, च्यावित त्यक्तदेह यावत् (जीव रहित शरीर को शय्यागत, संस्तारकगत, स्वाध्यायभूमि या श्मशानगत अथवा सिद्धशिलागत, देखकर कोई कहे)-अहो इस शरीर रूप पुद्गलसंघात ने 'अध्ययन' इस पद का व्याख्यान किया था, यावत् (प्ररूपित, दर्शित, निदर्शित), उपदर्शित किया था, (वैसा यह शरीर ज्ञायकशरीरद्रव्य-अध्ययन है।) [प्र.] एतद्विषयक कोई दृष्टान्त है ? __ [उ.] (इस प्रकार शिष्य के पूछने पर आचार्य ने उत्तर दिया) जैसे घड़े में से घी या मधु के निकाल लिये जाने के बाद भी कहा जाता है—यह घी का घड़ा था, यह मधुकुंभ था। यह ज्ञायकशरीरद्रव्य-अध्ययन का स्वरूप है। ५४२. से किं तं भवियसरीरदव्वज्झयणे ? भवियसरीरदव्वज्झयणे जे जीवे जोणीजम्मणनिक्खंते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिद्वेणं भावेणं अज्झयणे त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सति ण ताव सिक्खति, जहा को दिटुंतो ? अयं घयकुंभे भविस्सति, अयं महुकुंभे भविस्सति । से तं भवियसरीरदव्वज्झयणे । [५४२ प्र.] भगवन् ! भव्यशरीरद्रव्य-अध्ययन का क्या स्वरूप है ? [५४२ उ.] आयुष्मन् ! जन्मकाल प्राप्त होने पर जो जीव योनिस्थान से बाहर निकला और इसी प्राप्त शरीरसमुदाय के द्वारा जिनोपदिष्ट भावानुसार 'अध्ययन' इस पद को सीखेगा, लेकिन अभी-वर्तमान में नहीं सीख रहा है (ऐसा उस जीव का शरीर भव्यशरीरद्रव्याध्ययन कहा जाता है)। [प्र.] इसका कोई दृष्टान्त है ? [उ.] जैसे किसी घड़े में अभी मधु या घी नहीं भरा गया है, तो भी उसको यह घृतकुंभ होगा, मधुकुंभ होगा कहना। यह भव्यशरीरद्रव्याध्ययन का स्वरूप है। ५४३. से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवशारत्ते दव्वज्झयणे ? जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वज्झयणे पत्तय-पोत्थ्यलिहियं । से तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वज्झयणे । से तं णोआगमओ दव्वज्झणे । से तं दव्वज्झयणे । [५४३ प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्याध्ययन का क्या स्वरूप है ?
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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