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अनुयोगद्वारसूत्र [५३६ प्र.] भगवन् ! अध्ययन किसे कहते हैं ?
[५३६ उ.] आयुष्मन् ! अध्ययन के चार प्रकार कहे गये हैं, यथा—१. नाम-अध्ययन, २. स्थापनाअध्ययन, ३. द्रव्य-अध्ययन, ४. भाव-अध्ययन।
विवेचन— प्ररूपणा के लिए अधिक से अधिक प्रकारों में वस्तु का न्यास-निक्षेप न भी किया जाये, तो भी कम-से-कम नाम आदि चार प्रकारों से वर्णन किए जाने का सिद्धान्त होने से सूत्र में अध्ययन को नाम आदि चार प्रकारों में निक्षिप्त किया है। आगे क्रम से उनकी व्याख्या की जाती है। नाम-स्थापना-अध्ययन
५३७. णाम-ट्ठवणाओ पुव्ववण्णियाओ ।
[५३७] नाम और स्थापना अध्ययन का स्वरूप पूर्ववर्णित (नाम और स्थापना आवश्यक) जैसा ही जानना चाहिए।
विवेचन- सूत्र में नाम और स्थापना अध्ययन का स्वरूप बताने के लिए नाम और स्थापना आवश्यक का अतिदेश किया है और अतिदेश के संकेत के लिए सूत्र में 'पुव्ववण्णियाओ' पद दिया है। द्रव्य-अध्ययन
५३८. से किं तं दव्वज्झयणे ? दव्वज्झयणे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—आगमओ य णोआगओ य । [५३८ प्र.] भगवन् ! द्रव्य-अध्ययन का क्या स्वरूप है ? [५३८ उ.] आयुष्मन् ! द्रव्य-अध्ययन के दो प्रकार हैं, यथा—१. आगम से और २. नोआगम से। ५३९. से किं तं आगमतो दव्वज्झयणे ?
आगमतो दव्वज्झयणे जस्स णं अज्झयणे त्ति पदं सिक्खितं ठितं जितं मितं परिजितं जाव जावइया अणुवउत्ता आगमओ तावइयाई दव्वज्झयणाइं । एवमेव ववहारस्स वि । संगहस्स णं एगो वा अणेगो वा तं चेव भाणियव्वं जाव से तं आगमतो दव्वज्झयणे ।
[५३९ प्र.] भगवन् ! आगम से द्रव्य-अध्ययन का क्या स्वरूप है ?
[५३९ उ.] आयुष्मन् ! जिसने 'अध्ययन' इस पद को सीख लिया है, अपने (हृदय) में स्थिर कर लिया है, जित, मित और परिजित कर लिया है यावत् जितने भी उपयोग से शून्य हैं, वे आगम से द्रव्य-अध्ययन हैं। इसी प्रकार (नैगमनय जैसा ही) व्यवहारनय का मत है, संग्रहनय के मत से एक या अनेक आत्माएं एक आगमद्रव्यअध्ययन हैं, इत्यादि समग्र वर्णन आगमद्रव्य-आवश्यक जैसा ही यहां जानना चाहिए। यह आगमद्रव्य-अध्ययन का स्वरूप है।
५४०. से किं तं णोआगमतो दव्वज्झयणे ?
णोआगमतो दव्वज्झयणे तिविहे पण्णत्ते । तं जहा—जाणयसरीरदव्वज्झयणे भवियसरीरदव्वज्झयणे जाणयसरीरभवियसरीरवतिरित्ते दव्वज्झयणे ।