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निक्षेपाधिकार निरूपण
चाहिए । इसी प्रकार चतुर्विंशतिस्तव आदि अध्ययनों के समवतार के विषय में जानना चाहिए । समवतार का वर्णन करने के साथ उपक्रमद्वार की वक्तव्यता पूर्ण हुई। अब निक्षेप नामक अनुयोगद्वार का निरूपण करते हैं ।
निक्षेपनिरूपण
५३४. से किं तं निक्खेवे ?
निक्खेवे तिविहे पण्णत्ते । तं जहा — ओहनिष्फण्णे य नामनिप्फण्णे य सुत्तालावगनिप्फण्णे य ।
[५३४ प्र.] भगवन् ! निक्षेप किसे कहते हैं ?
[५३४ उ.] आयुष्मन्! निक्षेप के तीन प्रकार हैं । यथा — १. ओघनिष्पन्न, २. नामनिष्पन्न, ३. सूत्रालापक
निष्पन्न |
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विवेचन — इष्ट वस्तु का निर्णय करने के लिए अप्रकृत का निराकरण करके प्रकृत का विधान करना निक्षेप कहलाता है। इसके तीन भेदों का अर्थ इस प्रकार है---
है।
ओघनिष्पन्न — सामान्य रूप में अध्ययन आदि श्रुत नाम से निष्पन्न निक्षेप को ओघनिष्पन निक्षेप कहते हैं । नामनिष्पन्न - श्रुत के ही सामायिक आदि विशेष नामों से निष्पन्न निक्षेप नामनिष्पन्ननिक्षेप कहलाता है । सूत्रालापकनिष्पन्न — 'करेमि भंते सामाइयं' इत्यादि सूत्रालापकों से निष्पन्न निक्षेप सूत्रालापकनिष्पन्न निक्षेप
ओघनिष्पन्ननिक्षेप
५३५. से किं तं ओहनिप्फण्णे ?
ओहनिप्फण्णे चउव्विहे पण्णत्ते । तं जहा अज्झयणे अज्झीणे आए झवणा ।
[५३५ प्र.] भगवन्! ओघनिष्पन्ननिक्षेप का क्या स्वरूप है ?
[५३५ उ.] आयुष्मन्! ओघनिष्पन्ननिक्षेप के चार भेद हैं। उनके नाम हैं - १. अध्ययन, २. अक्षीण, ३ . आय, ४. क्षपणा ।
विवेचन — सूत्र में ओघनिष्पन्ननिक्षेप के जिन चार प्रकारों का नामोल्लेख किया है, वे चारों सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव आदि रूप श्रुतविशेष के ही एकार्थवाची सामान्य नाम हैं। क्योंकि जैसे पढ़ने योग्य होने से अध्ययन रूप हैं, वैसे ही शिष्यादि को पढ़ाने से सूत्रज्ञान क्षीण नहीं होने से अक्षीण हैं। मुक्ति रूप लाभ के दाता होने से आय हैं और कर्मक्षय करने वाले होने से क्षपणा हैं । इसी कारण ये अध्ययन आदि श्रुत के सामान्य नामान्तर होने से ओघनिष्पन्न हैं ।
अध्ययन निरूपण
५३६. से किं तं अज्झयणे ?
अज्झयणे चउव्विहे पण्णत्ते । तं जहा—णामज्झयणे ठवणज्झयणे दव्वज्झणे भावज्झणे ।