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________________ ४०८ अनुयोगद्वारसूत्र अत्थाहिगारे जो जस्स अज्झयणस्स अत्थाहिगारो । तं जहा सावजजोगविरती १ उक्कित्तण २ गुणवओ य पडिवत्ती ३ । खलियस्स निंदणा ४ वणतिगिच्छ ५ गुणधारणा ६ चेव ॥ १२३॥ से तं अत्थाहिगारे । [५२६ प्र.] भगवन् ! अर्थाधिकार का क्या स्वरूप है ? [५२६ उ.] आयुष्मन् ! (आवश्यकसूत्र के) जिस अध्ययन का जो अर्थ-वर्ण्य विषय है उसका कथन अर्थाधिकार कहलाता है। यथा १. सावद्ययोगविरती यानी सावध व्यापार का त्याग प्रथम (सामायिक) अध्ययन का अर्थ है। २. (चतुर्विंशतिस्तव नामक) दूसरे अध्ययन का अर्थ उत्कीर्तन स्तुति करना है। ३. (वंदना नामक) तृतीय अध्ययन का अर्थ गुणवान् पुरुषों का सम्मान, वन्दना, नमस्कार करना है। ४. (प्रतिक्रमण अध्ययन में) आचार में हुई स्खलनाओं—पापों आदि की निन्दा करने का अर्थाधिकार है। ५. (कायोत्सर्ग अध्ययन में) व्रणचिकित्सा करने रूप अर्थाधिकार है। ६. (प्रत्याख्यान अध्ययन का) गुण धारण करने रूप अर्थाधिकार है। यही अर्थाधिकार है। विवेचन— जिस अध्ययन का जो अर्थ है वह उसका अर्थाधिकार कहलाता है। जैसे आवश्यकसूत्र के छह अध्यायों के गाथोक्त वर्ण्यविषय हैं। इनका आशय पूर्व में बताया जा चुका है। समवतार निरूपण ५२७. से किं तं समोयारे ? . समोयारे छव्विहे पण्णत्ते । तं०—णामसमोयारे ठवणसमोयारे दव्वसमोयारे खेत्तसमोयारे कालसमोयारे भावसमोयारे । [५२७ प्र.] भगवन् ! समवतार का क्या स्वरूप है ? [५२७ उ.] आयुष्मन् ! समवतार के छह प्रकार हैं, जैसे—१. नामसमवतार, २. स्थापनासमवतार, ३. द्रव्यसमवतार, ४. क्षेत्रसमवतार, ५. कालसमवतार और ६. भावसमवतार। विवेचन— सूत्र में भेदों द्वारा समवतार के स्वरूप का वर्णन प्रारम्भ किया है। समवतार– वस्तुओं के अपने में, पर में और उभय में अन्तर्भूत होने का विचार करने को समवतार कहते हैं। उसके नाम आदि के भेद से छह प्रकार हैं। आगे क्रम से उनका वर्णन करते हैं। नाम-स्थापना-द्रव्यसमवतार ५२८. से किं तं णामसमोयारे ? नाम-ठवणाओ पुव्ववण्णियाओ । [५२८ प्र.] भगवन् ! नाम (स्थापना) समवतार का स्वरूप क्या है ? [५२८ उ.] आयुष्मन् ! नाम और स्थापना (समवतार) का वर्णन पूर्ववत् (आवश्यक के वर्णन जैसा) यहां भी जानना चाहिए।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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