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________________ अर्थाधिकार निरूपण ४०७ क्षणभंग आदि असदर्थ का प्रतिपादन करता है। एकान्ततः क्षणभंग आदि सिद्धान्त असद्रूप इसलिए है कि उसमें युक्ति, प्रमाण आदि से विरोध है। जैसे—एकान्ततः पदार्थ को क्षणभंगुर मानने पर धर्म-अधर्म का उपदेश, सुकृत दुष्कृत, परलोक आदि में गमन तथा इसी प्रकार से अन्य लोकव्यवहार में नहीं बन सकते हैं। तथा ___४. एकान्त रूप से शून्यता का प्रतिपादन करने वाला होने से परसमय में किसी भी प्रकार की क्रिया करना संभवित नहीं और तब क्रिया करने वाले कर्ता का भी अभाव मानना पड़ेगा। क्योंकि सर्वशून्यता में जब समस्त पदार्थ ही शून्य रूप हैं तो यह स्वाभाविक है कि कर्ता और क्रिया आदि सभी शून्यरूप होंगे। यदि ऐसा न माना जाये तो सर्वशून्यता का सिद्धान्त ही नहीं बन सकता है। इसी कारण परसमय असद्भाव रूप का प्रतिपादक होने से उसकी वक्तव्यता नहीं मानी जा सकती है। ___५. परसमयवक्तव्यता इसलिए भी नहीं मानी जा सकती है, क्योंकि वह उन्मार्ग-परस्पर विरुद्ध वचनों की प्रतिपादक है। जैसे—परसमय कभी तो कहता है कि स्थावर और त्रस रूप किसी भी प्राणी की हिंसा न करे तथा समस्त प्राणियों को अपना जैसा ही माने। इस प्रकार की प्रवृत्ति करने वाला धार्मिक है। किन्तु साथ ही ऐसा भी कहता है कि अश्वमेध यज्ञ करते समय ५०९७ पशुओं की बलि करना चाहिए।' इस प्रकार जब परसमय में स्पष्ट रूप से पूर्वापर उन्मार्गता है तब उसकी वक्तव्यता मान्य कैसे की जा सकती ६. परसमय उपदेश रूप भी नहीं है—अनुपदेश (कुत्सित उपदेश) रूप है। क्योंकि उपदेश जीवों को अहित से छुड़ाकर हित में प्रवृत्ति कराने वाला होता है, परन्तु परसमय के उपदिष्ट सिद्धान्त जीवों को अहित की ओर ले जाते हैं। जैसे- जब सभी कुछ क्षणिक है तो कौन विषयादिकों का सेवन करने में प्रवृत्ति नहीं करेगा? अर्थात् सभी प्रवृत्ति करेंगे। क्योंकि इस सिद्धान्त के अनुसार वे यह तो जान ही लेंगे कि हम क्षणिक हैं अत: नरकादि के दुःख रूप फल तो हमें भोगना ही नहीं पड़ेंगे, फलभोग के काल तक हम रहने वाले नहीं है। इसी तरह के अन्यान्य अनादिकों से युक्त होने के कारण परसमय मिथ्यादर्शन रूप है। इसी कारण शब्दादि नयत्रय को स्वसमयवक्तव्यता ही मान्य है। इस प्रकार से वक्तव्यता सम्बन्धी नयदृष्टियां जानना चाहिए। अब अर्थाधिकार का निरूपण करते हैं। अर्थाधिकार निरूपण ५२६. से किं तं अत्थाहिगारे ? १. -अनुयोग. मलधारीयावृत्ति पत्र २४४ २. धम्माधम्मुवएसो कयाकयं परभवाइगमणं च । सव्वावि हु लोयठिई न घडइ एगंतखिणयम्मी ॥ न हिंस्यात् सर्वभूतानि स्थावराणि चराणि च । आत्मवत् सर्वभूतानि यः पश्यति स धार्मिकः ॥ षट् सहस्राणि युज्यन्ते पशूनां मध्यमेऽहनि । अश्वमेधस्य वचनान्यूनानि पशुभिस्त्रिभिः ॥ सर्व क्षणिकमित्येतद् ज्ञात्वा को न प्रवर्तते ? विषयादौ विपाको मे न भावीति विनिश्चयात् ॥ —अनुयोग. मलधारीयावृत्ति पत्र २४४ -अनुयोग. मलधारीयावृत्ति पत्र २४४ —अनुयोग. मलधारीयावृत्ति पत्र २४४
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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