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________________ अनुयोगद्वारसूत्र उन्मार्ग, अनुपदेश (कु-उपदेश ) और मिथ्यादर्शन रूप है। इसलिए स्वसमय की वक्तव्यता है किन्तु परसमयवक्तव्यता नहीं है और न स्वसमय-परसमयवक्तव्यता ही है । इस प्रकार से वक्तव्यताविषयक निरूपण जानना चाहिए। ४०६ विवेचन — प्रस्तुत सूत्र में स्पष्ट किया है कि पूर्वोक्त तीन वक्तव्यताओं में से कौन नय किसको अंगीकार करता है ? नयदृष्टियां लोकव्यवहार से लेकर वस्तु के स्वकीय स्वरूप तक का विचार करती हैं । इसी अपेक्षा यहां वक्तव्यताविषयक नयों का मंतव्य स्पष्ट किया गया है। नैगम आदि सातों नयों में से अनेक प्रकार से वस्तु का प्रतिपादन करने वाले नैगमनय, सर्वार्थ के संग्राहक संग्रहनय और लोकव्यवहार के अनुसार व्यवहार करने में तत्पर व्यवहारनय की मान्यता है कि लोक में इसी प्रकार की रूढि - परम्परा प्रचलित होने से तीनों ही—स्व, पर और उभय समय की वक्तव्यताएं माननी चाहिए। ऋजुसूत्रनय पूर्वोक्त नयों से विशुद्धतर है, अतः उसकी दृष्टि से दो स्वसमय और परसमय की वक्तव्यता हो सकती है। स्वसमय-परसमय वक्तव्यता में से स्वसमयवक्तव्यता का स्वसमयवक्तव्यता में और परसमयवक्तव्यता का परसमयवक्तव्यता में अन्तर्भाव हो जाने से वक्तव्यता का तीसरा भेद संभव नहीं है। अतएव तीसरी वक्तव्यता युक्तिसंगत नहीं है। जैसे नैगम आदि तीन नयों से ऋजुसूत्रनय विशुद्धतर को विषय करने वाला है, वैसे ही ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा अधिक विशुद्धतर विषय वाले शब्दादि तीनों नयों को एक मात्र स्वसमयवक्तव्यता ही मान्य है। क्योंकि परसमयादि शेष दो मान्यतायें मानने में यह विसंगतियां हैं १. परसमय 'नास्त्येवात्मा' – आत्मा नहीं है, इत्यादि रूप से अनर्थ रूप का प्रतिपादक होने के कारण अनर्थ रूप इसलिए है कि आत्मा के अभाव में उसका प्रतिषेध कौन करेगा ? जो यह विचार करता है कि 'मैं नहीं हूं' वही तो जीव- आत्मा है। जीव के सिवाय अन्य पदार्थ संशयकारक नहीं हो सकता है। इसी प्रकार की और भी अनर्थता (विसंगतियां) परसमय में जानना चाहिए। २. हेत्वाभास के बल से प्रवृत्त होने के कारण परसमय अहेतु रूप भी है। जैसे— ' नास्त्येवात्मा अत्यन्तानुपलब्धेः'——आत्मा नहीं है क्योंकि उसकी अत्यन्त अनुपलब्धि है। यहां अत्यन्त अनुपलब्धि हेतु हेत्वाभास है। हेत्वाभास होने का कारण यह है कि आत्मा के ज्ञानादि गुणों की उपलब्धि होती है। जैसे घटादिकों के गुणोंरूपादि की उपलब्धि होने से घटादि की सत्ता है, उसी प्रकार जीव के ज्ञानादिक गुणों की उपलब्धि होने से उसकी सत्ता है। ३. परसमयवक्तव्यता असदर्थ का प्रतिपादन करने वाली भी है। क्योंकि परसमय असद्भाव रूप एकान्त १. २. जो चिंतेइ सरीरे नत्थि अहं स एव होइ जीवोत्ति । न हु जीवंमि असंते संसयउप्पायओ अण्णो ॥ नाणाई गुणा अणुभवओ होइ जंतुणो सत्ता । जह रूवाइगुणाणं उवलंभाओ घडाईण ॥ - अनुयोग. मलधारीयावृत्ति पत्र २४४ - अनुयोग. मलधारीयावृत्ति पत्र २४४
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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