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प्रमाणाधिकारनिरूपण
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आशय स्पष्ट और सुगम है। किन्तु अन्य कतिपय आचार्य उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात की अन्य रूप से प्ररूपणा करते हैं। उनका मंतव्य इस प्रकार है
जघन्य असंख्यातासंख्यात की राशि का वर्ग करना, फिर उस वर्ग की जो राशि आए, उसका भी पुन: वर्ग करना, फिर उस वर्ग की जो राशि आये, उसका भी पुनः वर्ग करना। इस तरह तीन बार वर्ग करके फिर उस वर्गराशि में निम्नलिखित दस असंख्यात राशियों का प्रक्षेप करना चाहिए।
लोगागासपएसा धम्माधम्मेगजीवदेसा य ।। दव्वठिआ निओआ, पत्तेया चेव बोद्धव्वा ॥ ठिइबंधज्झवसाणा अणुभागा जोगच्छेअपलिभागा ।
दोण्ह य समाण समया असंखपक्खेवया दसउ ॥ अर्थात् १. लोकाकाश के प्रदेश, २. धर्मास्तिकाय के प्रदेश, ३. अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, ४. एक जीव के प्रदेश, ५. द्रव्यार्थिक निगोदरे, ६. अनन्तकाय को छोड़कर शेष प्रत्येककायिक (शरीरी) जातियों के जीव, ७. ज्ञानावरण आदि कर्मों के स्थितिबंध के असंख्यात अध्यवसायस्थान, ८. अनुभागविशेष, ९. योगच्छेद-प्रतिभाग १०. दोनों कालों के समय।
उक्त दसों के प्रक्षेप के बाद पुनः इस समस्त राशि का तीन बार वर्ग करके प्राप्त संख्या में से एकन्यून करने से उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात का प्रमाण होता है।
इस प्रकार से नौ प्रकार के असंख्यात का वर्णन जानना चाहिए। अब अनन्त के भेदों का स्वरूपनिर्देश करते हैं। परीतानन्त निरूपण
५१५. जहण्णयं परित्ताणतयं केत्तियं होति ?
यह दस क्षेपक त्रिलोकसार गाथा ४२ से ४६ तक में भी निर्दिष्ट हैं। सूक्ष्म, बादर अनन्तकायिक वनस्पति जीवों के शरीर-सूक्ष्माणां बादराणां चानन्तकायिकवनस्पतिजीवानां शरीराणीत्यर्थः।
-अनुयोगद्वार. मलधारीया वृत्ति पत्र २४० अनन्तकायिकों को छोड़कर प्रत्येकशरीर पृथ्वी, अप, तेज, वायु, वनस्पति और त्रस जीव। जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिबंध को छोड़कर मध्यम स्थितिबंध के असंख्यात अध्यवसायस्थान। कर्मों की फलदान शक्ति की तरतम आदि भिन्नरूपता को अनुभागविशेष कहते हैं। मन-वचन-काय सम्बन्धी वीर्य का नाम योग है। उनका केवलि-प्रज्ञा-छेदनक द्वारा कुत निर्विभाग अंश को योगप्रतिभाग कहते हैं। उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के समय। किसी संख्या का तीन बार वर्ग करने की विधि-सर्वप्रथम उस संख्या का आपस में वर्ग करना, फिर दूसरी बार वर्गजन्य संख्या का वर्गजन्य संख्या से वर्ग करना, तीसरी बार दूसरी बार की वर्गजन्य संख्या का उसी वर्गजन्य संख्या से वर्ग करना। जैसे कि ५ का तीन बार वर्ग करना हो तो पहला वर्ग ५४५ =२५ हुआ। इस २५ का दूसरी बार इसी संख्या के साथ वर्ग करना २५४२५ -६२५ यह दूसरा वर्ग हुआ। इस ६२५ का ६२५ से गुणा करना ६२५४६२५ =३९०६२५ यह तीसरा वर्ग हुआ। इस प्रकार यह ५ का तीन बार वर्ग करना कहलाता है।