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अनुयोगद्वारसूत्र
उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं जहण्णएणं जुत्तासंखेज्जएणं आवलिया गुणिया अण्णमण्णब्भासो रूवूणो उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं होइ, अहवा जहन्नयं असंखेज्जासंखेज्जयं रूवूणं उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं होति ।
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[५१२ प्र.] भगवन् ! उत्कृष्ट युक्तासंख्यात कितने प्रमाण का होता है ?
[५१२ उ.] आयुष्मन् ! जघन्य युक्तासंख्यात राशि को आवलिका से ( जघन्य युक्तासंख्यात से) परस्पर अभ्यास रूप गुणा करने से प्राप्त प्रमाण में से एक न्यून उत्कृष्ट युक्तासंख्यात है । अथवा जघन्य असंख्यातासंख्यात राशि प्रमाण में से एक कम करने से उत्कृष्ट युक्तासंख्यात होता है ।
विवेचन— प्रस्तुत दो सूत्रों में युक्तासंख्यात के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट भेदों का स्वरूप बतलाया है। आशय सुगम है। यहां इतना ज्ञातव्य है कि आवलिका के असंख्यात समय जघन्य युक्तासंख्यात में जितने सर्षप होते हैं, उतने समय-प्रमाण हैं । अर्थात् आवलिका जघन्य युक्तासंख्यात के तुल्य समयप्रमाण वाली जानना चाहिए । असंख्यातासंख्यात का निरूपण
५१३. जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं केत्तियं होइ ?
जहन्नएणं जुत्तासंखेज्जएणं आवलिया गुणिया अण्णमण्णब्भासो पडिपुण्णो जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ, अहवा उक्कोसए जुत्तासंखेज्जए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं होति, तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं ण पावति ।
[५१३ प्र.] भगवन् ! जघन्य असंख्यातासंख्यात का क्या प्रमाण है ?
[५१३ उ.] आयुष्मन्! जघन्य युक्तासंख्यात के साथ आवलिका की राशि का परस्पर अभ्यास करने से प्राप्त परिपूर्ण संख्या जघन्य असंख्यातासंख्यात है । अथवा उत्कृष्ट युक्तासंख्यात में एक का प्रक्षेप करने से जघन्य असंख्यातासंख्यात होता है । तत्पश्चात् मध्यम स्थान होते हैं और वे स्थान उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात प्राप्त होने से पूर्व तक जानना चाहिए।
५१४. उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं केत्तियं होति ?
जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं जहण्णयअसंखेज्जासंखेज्जयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णब्भासो रूवूणो उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ, अहवा जहण्णयं परित्ताणंतयं रूवूणं उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं होति ।
[५१४ प्र.] भगवन्! उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात का प्रमाण कितना है ?
[५१४ उ.] आयुष्मन् ! जघन्य असंख्यातासंख्यात मात्र राशि का उसी जघन्य असंख्यातासंख्यात राशि से अन्योन्य (परस्पर एक दूसरे से ) अभ्यास - गुणा करने से प्राप्त संख्या में से एक न्यून करने पर प्राप्त संख्या उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात है। अथवा एक न्यून जघन्य परीतानन्त उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात का प्रमाण है।
विवेचन — प्रस्तुत दो सूत्रों में जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातों का स्वरूप बताया है।