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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण ३९७ भेदों का स्वरूप स्पष्ट किया है। जघन्य और मध्यम का स्वरूप सुगम है। उत्कृष्ट संख्यात में एक के मिलाने से जघन्य परीतासंख्यात राशि होती है। जैसे उत्कृष्ट संख्यात की राशि १०० है, इस राशि में एक (१) मिलाने पर प्राप्त राशि जघन्य परीतासंख्यात होगी अर्थात् १०० उत्कृष्टसंख्यात और १००+१ = १०१ जघन्य परीतासंख्यात का प्रमाण हुआ तथा जघन्य से ऊपर और उत्कृष्ट से नीचे तक की संख्याएं मध्यम परीतासंख्यात हैं। जघन्य परीतासंख्यात राशि को उतने ही प्रमाण वाली राशि से अभ्यास करने से प्राप्त राशि में से एक कम कर देने पर प्राप्त राशि उत्कृष्ट परीतासंख्यात संख्या का प्रमाण है। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है जिस संख्या का अभ्यास करना है उसके अंकों को उतनी बार लिखकर आपस में गुणा करना। अर्थात् पहले अंक को दूसरे अंक से गुणा करना और जो गुणनफल आए उसका तीसरे अंक से गुणा करना और उसके गुणनफल का चौथे अंक से गुणा करना। इस प्रकार पूर्व-पूर्व के गुणनफल का अगले अंक से गुणा करना और अंत में जो गुणनफल प्राप्त हो वही विवक्षित संख्या का अभ्यास है। अतएव कल्पना से मान लें कि जघन्य परीतासंख्यात का प्रमाण ५ है। इस पांच को पांच बार (५-५-५-५-५) स्थापित कर परस्पर गुणा करने पर इस प्रकार संख्या होगी ५४५ =२५, २५४५ =१२५, १२५४५ =६२५, ६२५४५ =३१२५ । यह संख्या वास्तविक रूप में असंख्यात के स्थान में जानना चाहिए। इसमें से एक न्यून संख्या (३१२५–१ =३१२४) उत्कृष्ट परीतासंख्यात है और यदि एक कम न किया जाए तो जघन्य युक्तासंख्यात रूप मानी जाएगी। इसीलिए प्रकारान्तर से उत्कृष्ट परीतासंख्यात का प्रमाण बताने के लिए कहा है कि जघन्य युक्तासंख्यात में से एक कम करने पर उत्कृष्ट परीतासंख्यात का प्रमाण होता है। अब युक्तासंख्यात के तीन भेदों का स्वरूप कहते हैं। युक्तासंख्यात निरूपण ५११. जहन्नयं जुत्तासंखेजयं केत्तियं होति ? जहन्नयं जुत्तासंखेजयं जहन्नयं परित्तासंखेजयं जहण्णयपरित्तासंखेजयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णब्भासो पडिपुण्णो जहन्नयं जुत्तासंखेजयं हवति, अहवा उक्कोसए परित्तासंखेजए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं जुत्तासंखेजयं होति, आवलिया वि तत्तिया चेव, तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाइं ठाणाइं जाव उक्कोसयं जुत्तासंखेजयं ण पावइ । [५११ प्र.] भगवन् ! जघन्य युक्तासंख्यात का कितना प्रमाण है ? [५११ उ.] आयुष्मन्! जघन्य परीतासंख्यात राशि का जघन्य परीतासंख्यात राशि से अन्योन्य अभ्यास करने पर (उनका उन्हीं के साथ गुणा करने से) प्राप्त परिपूर्ण संख्या जघन्य युक्तासंख्यात का प्रमाण होता है। अथवा उत्कृष्ट परीतासंख्यात के प्रमाण में एक का प्रक्षेप करने से (जोड़ने से) जघन्य युक्तासंख्यात होता है। आवलिका भी जघन्य युक्तासंख्यात तुल्य समय-प्रमाण वाली जानना चाहिए। तत्पश्चात् जघन्य युक्तासंख्यात से आगे जहां तक उत्कृष्ट युक्तासंख्यात प्राप्त न हो, तत्प्रमाण मध्यम युक्तासंख्यात है। ५१२. उक्कोसयं जुत्तासंखेजयं केत्तियं होति ?
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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