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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण तदनन्तर अनवस्थितपल्य के दानों में से आगे के द्वीप, समुद्र में एक-एक सरसों का दाना डालें और जब खाली हो तब एक सरसों का दाना शलाकापल्य में डालें और उस द्वीप या समुद्र जितने लंबे-चौड़े नये अनवस्थितपल्य की कल्पना करके सरसों से भरें और पुनः एक-एक सरसों का दाना एक-एक द्वीप और समुद्र में डालें । इस प्रकार पुनः दूसरी बार शलाकापल्य को पूरा भरें और जिस द्वीप या समुद्र में अनवस्थितपल्य खाली हुआ हो उस द्वीप या समुद्र के बराबर के अनवस्थितपल्य की कल्पना करें और उसे सरसों से भरें। ३९५ ऐसा करने पर अनवस्थित और शलाका पल्य भरे होंगे और प्रतिशलाकापल्य में एक सरसों का दाना होगा। अब पुनः शलाकापल्य को लेकर वहां से आगे के द्वीप समुद्र में एक-एक दाना डालकर उसे खाली करें और खाली होने पर एक सरसों का दाना प्रतिशलाकापल्य में डालें। ऐसा होने पर प्रतिशलाकापल्य में दो दाने और शलाकापल्य खाली और अनवस्थितपल्य भरा हुआ होगा। अतः इस भरे हुए अनवस्थितपल्य को लेकर वहां से आगे के द्वीप - समुद्रों में एक-एक दाना डालें और खाली होने पर शलाकापल्य में एक साक्षीभूत सरसों का दाना लें। इस प्रकार पूर्ववत् विधि से शलाकापल्य को पूरा भरें। तब अनवस्थितपल्य भी भरा हुआ होता है । बाद में शलाकापल्य को लेकर आगे के द्वीप समुद्रों में खाली करें और खाली होने पर एक सरसों प्रतिशलाकापल्य में डालें । इस प्रकार अनवस्थितपल्य के द्वारा शलाकापल्य और शलाकापल्य के द्वारा प्रतिशलाकापल्य पूर्ण भरना चाहिए । जब प्रतिशलाकापल्य पूरा भरा हुआ होता है तब अनवस्थित, शलाका और प्रतिशलाका यह तीनों पल्य होते हैं। इसके पश्चात् प्रतिशलाकापल्य को लेकर आगे के द्वीप - समुद्रों में खाली करें और जब खाली हो जायें तब महाशलाकापल्य में एक साक्षीभूत सरसों डालें । इस समय महाशलाकापल्य में एक सरसों, प्रतिशलाकापल्य खाली और शलाका व अनवस्थितपल्य भरे हुए होते हैं। इस समय शलाकापल्य को लेकर आगे के द्वीप - समुद्रों में खाली करें और खाली होने पर एक सरसों प्रतिशलाकापल्य में डालें। तब महाशलाका और प्रतिशलाका पल्य में एक-एक सरसों और शलाकापल्य खाली तथा अनवस्थितपल्य भरा हुआ होता है। इसके बाद अनवस्थितपल्य को लेकर आगे के द्वीप-समुद्रों में खाली करें और शलाकापल्य को पुनः भरें । जब शलाकापल्य भर जाये तब अनवस्थितपल्य को भरा हुआ रखें और शलाकापल्य को खाली करके एक सरसों प्रतिशलाकापल्य में डालें। इस रीति से अनवस्थित द्वारा शलाका और शलाका द्वारा प्रतिशलाकापल्य को पूर्ण भरना चाहिए। जब प्रतिशलाकापल्य खाली हो जाये तब महाशलाकापल्य में एक सरसों और शेष पल्य भरे हुए होते हैं । इसके बाद प्रतिशलाकापल्य को खाली करके महाशलाकापल्य में एक सरसों डालें और शलाका को खाली करके प्रतिशलाकापल्य में एक सरसों डालें तथा अनवस्थितपल्य को खाली करके एक सरसों शलाकापल्य में डालें। इस प्रकार जब महाशलाकापल्य में एक सरसों के दाने की वृद्धि होती है तब प्रतिशलाकापल्य खाली और शलाका तथा अनवस्थित पल्य भरे हुए होते हैं । इस प्रकार पूर्व - पूर्व पल्य खाली हों तब एक-एक साक्षी रूप सरसों आगे-आगे के पल्य में डालते - डालते जब महाशलाकापल्य पूरा भर जाये तब प्रतिशलाकापल्य खाली और शलाका, अनवस्थित पल्य भरे हुए होते हैं । इसी प्रकार शलाका द्वारा प्रतिशलाका और अनवस्थित द्वारा शलाकापल्य को पूर्ण करें। जब महाशलाका और प्रतिशलाका पल्य पूर्ण होते हैं तब शलाकापल्य खाली होता है और अनवस्थितपल्य भरा हुआ ।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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