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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण ३९१ उक्त कथन का संक्षिप्त प्रारूप इस प्रकार है त्रिविध संख्यात १. जघन्य २. मध्यम ३. उत्कृष्ट नवविध असंख्यात १ परीतासंख्यात २ युक्तासंख्यात ३ असंख्यातासंख्यात १ जघन्य परीतासं. २ मध्यम परीतासं. ३ उत्कृष्ट परीतासं. ४ जघन्य युक्तासं. ५ मध्यम युक्तासं. ६ उत्कृष्ट युक्तसं. अष्टविध अनन्त ७ जघन्य असंख्यातासं. ८ मध्यम असंख्यातासं. ९ उत्कृष्ट असंख्यातासं. १ परीतानन्त २ युक्तानन्त ३अनन्तानन्त १ जघन्य परीतानन्त ४ जघन्य युक्तानन्त ७ जघन्य अनन्तानन्त २ मध्यम परीतानन्त ५ मध्यम युक्तानन्त ८ मध्यम अनन्तानन्त ३ उत्कृष्ट परीतानन्त ६ उत्कृष्ट युक्तानन्त असंख्यात आदि के भेदों का विस्तार से वर्णन करने के लिए सर्वप्रथम संख्यात की प्ररूपणा की जाती है। संख्यातनिरूपण ५०७. जहण्णयं संखेजयं केत्तियं होइ ? दोरूवाइं, तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाइं जाव उक्कोसयं संखेजयं ण पावइ । [५०७ प्र.] भगवन् ! जघन्य संख्यात कितने प्रमाण में होता है ? (अर्थात् किस संख्या से लेकर किस संख्या पर्यन्त जघन्य संख्यात माना जाता है ?) [५०७ उ.] आयुष्मन् ! दो रूप प्रमाण जघन्य संख्यात है, उसके पश्चात् (तीन, चार आदि) यावत् उत्कृष्ट संख्यात का स्थान प्राप्त न होने तक मध्यम संख्यात जानना चाहिए। ५०८. उक्कोसयं संखेजयं केत्तियं होइ ?. उक्कोसयस्स संखेजयस्स परूवणं करिस्सामि से जहानामए पल्ले सिया, एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिणि जोयणसयसहस्साइं सोलस य सहस्साई दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसते तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसतं तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलयं च
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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