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________________ ३९० अनुयोगद्वारसूत्र ५०२. से किं तं असंखेज्जासंखेज्जए ? असंखेज्जासंखेज्जए तिविहे पण्णत्ते । तं जहा—जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोस । [५०२ प्र.] भगवन्! असंख्यातासंख्यात का क्या स्वरूप है ? [५०२ उ.] आयुष्मन्! असंख्यातासंख्यात तीन प्रकार का है । यथा - १. जघन्य असंख्यातासंख्यात, २ . उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात और ३. अजघन्यानुत्कृष्ट (मध्यम) असंख्यातासंख्यात । ५०३. से किं तं अनंतए ? अनंत तिविहे पण्णत्ते । तं जहा — परित्ताणंतए जुत्ताणंतर अणंताणंतए । [५०३ प्र.] भगवन् ! अनन्त का क्या स्वरूप है ? [५०३ उ.] आयुष्मन्! अनन्त के तीन प्रकार हैं। यथा- १. परीतानन्त, २. युक्तानन्त और ३ अनन्तानन्त । ५०४. से किं तं परित्ताणंतए ? परित्ताणंत तिविहे पण्णत्ते । तं जहा—जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोस । [५०४ प्र.] भगवन् ! परीतानन्त किसे कहते हैं ? [५०४ उ.] आयुष्मन् ! परीतानन्त तीन प्रकार का प्रतिपादन किया गया है। यथा- १. जघन्य परीतानन्त, २ . उत्कृष्ट परीतानन्त और ३. अजघन्य - अनुत्कृष्ट ( मध्यम ) परीतानन्त । ५०५. से किं तं जुत्ताणंतए ? जुत्तात तिवि पण्णत्ते । तं जहा जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए । [५०५ प्र.] भगवन् ! युक्तानन्त किसे कहते हैं ? [५०५ उ.] आयुष्मन्! युक्तानन्त के तीन प्रकार कहे हैं। वे इस प्रकार - १. जघन्य युक्तानन्त, २. उत्कृष्ट युक्तानन्त, ३. अजघन्य - अनुत्कृष्ट (मध्यम) युक्तानन्त । ५०६. से किं तं अणंताणंतए ? अनंतात दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—जहण्णए य अजहण्णमणुक्कोसए य । [५०६ प्र.] भगवन्! अनन्तानन्त का क्या स्वरूप है ? [५०६ उ.] आयुष्मन् ! अनन्तानन्त के दो प्रकार कहे हैं । यथा - १. जघन्य अनन्तानन्त और २. अजघन्यअनुत्कृष्ट (मध्यम) अनन्तानन्त । विवेचन उक्त प्रश्नोत्तरों में गणना संख्या के संख्यात, असंख्यात और अनन्त इन तीन मुख्य भेदों के अवान्तर भेद-प्रभेदों का निरूपण किया है। संख्यात के तो जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट ये तीन अवान्तर भेद हैं। लेकिन असंख्यात और अनन्त के मुख्य तीन अवान्तर भेदों के नामों में परीत और युक्त तो समान हैं किन्तु तीसरे भेद का नाम असंख्यातासंख्यात और अनन्तानन्त है । परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात और असंख्यातासंख्यात जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट होने से असंख्यात के कुल नौ भेद हैं। परीतानन्त और युक्तानन्त भी जघन्य आदि तीन-तीन भेद वाले हैं। किन्तु अनन्तानन्त में उत्कृष्ट अनन्तानन्त असंभव होने से यह भेद नहीं बनता है । अतएव अनन्त के आठ भेद हैं 1
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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