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प्रमाणाधिकारनिरूपण
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नहीं कहलाता है इसलिए दो से गणना प्रारंभ होती है। वह गणनासंख्या १. संख्यात, २. असंख्यात और ३. अनन्त, इस तरह तीन प्रकार की जानना चाहिए।
विवेचन- 'ये इतने हैं' इस रूप से गिनती को गणना कहते हैं और यह गणनारूप संख्या गणनासंख्या कहलाती है। यह गणना दो से प्रारम्भ होती है। एक संख्या तो है किन्तु गणना नहीं है। क्योंकि एक घटादि पदार्थ के दिखने पर घटादिक रखे हैं ऐसा कहा जाता है किन्तु 'एक संख्या विशिष्ट यह घट रखा है' ऐसी प्रतीति नहीं होती है। अथवा लेन-देन के व्यवहार में एक वस्तु प्रायः गणना की विषयभूत नहीं होती है, इसलिए असंव्यवहार्य अथवा अल्प होने के कारण एक को गणनासंख्या का विषय नहीं कहा जाता है। यह गणनासंख्या संख्येय (संख्यात), असंख्येय (असंख्यात) और अनन्त के भेद से तीन प्रकार की है। जिनका अब अनुक्रम से विस्तृत वर्णन करते हैं। संख्यात आदि के भेद
४९८. से किं तं संखेज्जए ? संखेजए तिविहे. पण्णत्ते । तं जहा—जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए । [४९८ प्र.] भगवन् ! संख्यात का क्या स्वरूप है ?
[४९८ उ.] आयुष्मन्! संख्यात तीन प्रकार का प्रतिपादन किया गया है। वह इस प्रकार—१. जघन्य संख्यात, २. उत्कृष्ट संख्यात और ३. अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) संख्यात।
४९९. से किं तं असंखेजए ? असंखेज्जए तिविहे पण्णत्ते । तं जहा—परित्तासंखेज्जए जुत्तासंखेजए असंखेजासंखेजए । [४९९ प्र.] भगवन् ! असंख्यात का क्या स्वरूप है ?
[४९९ उ.] आयुष्मन्! असंख्यात के तीन प्रकार हैं। जैसे—१. परीतासंख्यात, २. युक्तासंख्यात और ३. असंख्यातासंख्यात।
५००. से किं तं परित्तासंखेज्जए ? परित्तासंखेजए तिविहे पण्णत्ते । तं जहा—जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए । [५०० प्र.] भगवन् ! परीतासंख्यात का क्या स्वरूप है ?
[५०० उ.] आयुष्मन्! परीतासंख्यात तीन प्रकार का कहा है—१. जघन्य परीतासंख्यात, २. उत्कृष्ट परीतासंख्यात और ३. अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) परीतासंख्यात।
५०१. से किं तं जुत्तासंखेज्जए ? जुत्तासंखेजए तिविहे पण्णत्ते । तं जहा—जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए । [५०१ प्र.] भगवन् ! युक्तासंख्यात का क्या स्वरूप है ?
[५०१ उ.] आयुष्मन्! युक्तासंख्यात तीन प्रकार का निरूपित किया है। यथा—१. जघन्य युक्तासंख्यात, २. उत्कृष्ट युक्तासंख्यात और ३. अजघन्यानुत्कृष्ट (मध्यम) युक्तासंख्यात। १. 'एतावन्त एते' इति सङ्ख्यानं गणना सङ्ख्या।।
—अनु. मलधारीया वृत्ति पत्र २३४