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________________ ३८८ परिमाणसंखा । से तं परिमाणसंखा । [४९५ प्र.] भगवन्! दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या क्या है ? [४९५ उ.] आयुष्मन्! दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या के अनेक प्रकार कहे गये हैं । यथा—पर्यवसंख्या यावत् अनुयोगद्वारसंख्या, प्राभृतसंख्या, प्राभृतिकासंख्या, प्राभृतप्राभृतिकासंख्या, वस्तुसंख्या और पूर्वसंख्या । इस प्रकार से दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या का स्वरूप जानना चाहिए । यही परिमाणसंख्या का निरूपण है। अनुयोगद्वारसूत्र विवेचन — इस सूत्र में दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या का प्रतिपादन किया है। जिसमें पर्यवसंख्या से लेकर अनुयोगद्वारसंख्या तक के नाम तो कालिक श्रुतपरिमाणसंख्या के अनुरूप हैं और शेष प्राभृत आदि अधिक नामों का उल्लेख सूत्र में किया है। ये प्राभृत आदि सब पूर्वान्तर्गत श्रुताधिकार विशेष हैं। इस प्रकार से परिमाणसंख्या का निर्देश करने के बाद अब ज्ञानसंख्या के स्वरूप का वर्णन किया जाता है। ज्ञानसंख्या निरूपण ४९६. से किं तं जाणणासंखा ? जाणणासंखा जो जं जाणइ सो तं जाणति, तं जहा सद्दं सद्दिओ, गणियं गणिओ, निमित्तं नेमित्तिओ, कालं कालनाणी, वेज्जो वेज्जियं । से तं जाणणासंखा । [४९६ प्र.] भगवन्! ज्ञानसंख्या का क्या स्वरूप है ? [४९६ उ.] आयुष्मन्! जो जिसको जानता है उसे ज्ञानसंख्या कहते हैं। जैसे कि शब्द को जानने वाला शाब्दिक, गणित को जानने वाला गणितज्ञ – गणिक, निमित्त को जानने वाला नैमित्तिक, काल को जानने वाला कालज्ञानी (कालज्ञ) और वैद्यक को जानेन वाला वैद्य । यह ज्ञानसंख्या का स्वरूप है। विवेचन — जिसके द्वारा वस्तु का स्वरूप जाना जाता है— निश्चय किया जाता है, उसे ज्ञान और इस ज्ञान रूप संख्या को ज्ञानसंख्या कहते हैं । जैसे देवदत्त आदि जिस शब्द आदि को जानता है, वह उस शब्दज्ञान वाला आदि कहा जाता है । यह कथन ज्ञान और ज्ञानी में अभेदोपचार की अपेक्षा जानना चाहिए। इसी को ज्ञानसंख्या कहते हैं। अब गणनासंख्या का स्वरूप निरूपण करते हैं। गणनासंख्या निरूपण ४९७. से किं तं गणणासंखा ? गणणासंखा एक्को गणणं न उवेति, दुप्पभितिसंखा । तं जहा— संखेज्जए असंखेज्जए अनंत । १. [४९७ प्र.] भगवन्! गणनासंख्या का क्या स्वरूप है ? [४९७ उ.] आयुष्मन्! (ये इतने हैं, इस रूप में गिनती करने को गणनासंख्या कहते हैं ।) 'एक' (१) गणना प्राभृतादयः पूर्वान्तर्गताः श्रुताधिकारविशेषाः । — अनुयोगद्वार, टीका पृ. २३४
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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