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प्रमाणाधिकारनिरूपण
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वेढ (वेष्टक) संख्या, ९. निर्युक्तिसंख्या, १०. अनुयोगद्वारसंख्या ११. उद्देशसंख्या १२. अध्ययनसंख्या, १३. श्रुतस्कन्धसंख्या, १४. अंगसंख्या आदि कालिक श्रुतपरिमाणसंख्या है।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में कालिक श्रुतपरिमाण की संख्या के कतिपय नामों का उल्लेख किया है।
जिस श्रुत का रात्रि व दिन के प्रथम और अंतिम प्रहर में स्वाध्याय किया जाये उसे कालिक श्रुत कहते हैं । इसके अनेक प्रकार हैं। जैसे— उत्तराध्ययनसूत्र, दशाश्रुतस्कन्धकल्प (बृहत्कल्प), व्यवहारसूत्र, निशीथसूत्र आदि ।' जिसके द्वारा इनके श्लोक आदि के परिमाण का विचार हो उसे कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या कहते हैं ।
पर्यवसंख्या आदि के अर्थ - १. पर्यव, पर्याय अथवा धर्म और उसकी संख्या को पर्यवसंख्या कहते हैं । २. अकार आदि अक्षरों की संख्या गणना को अक्षरसंख्या कहते हैं । अक्षर संख्यात होते हैं, अनन्त नहीं । इसलिए अक्षरसंख्या संख्यात है ।
३. दो आदि अक्षरों के संयोग को संघात कहते हैं। इनकी संख्या -- गणना संघातसंख्या कहलाती है । यह संघातसंख्या भी संख्यात ही है ।
४. सुबन्त और तिङ्गन्त अक्षरसमूह पद कहलाता है। पदों की संख्या को पदसंख्या कहते हैं ।
५. श्लोक आदि के चतुर्थांश को पाद कहते हैं। इनकी संख्या को पादसंख्या कहते हैं ।
६. प्राकृत भाषा में लिखे गये छन्दविशेष को गाथा कहते हैं । इस गाथा - संख्या - गणना का नाम गाथा -
संख्या है।
७. श्लोकों की संख्या श्लोकसंख्या है ।
८. वेष्टकों (छन्दविशेष) की संख्या वेष्टकसंख्या कहलाती है।
९. निर्युक्ति की संख्या को नियुक्तिसंख्या कहते हैं ।
१०. व्याख्या के उपायभूत सत्पदप्ररूपण अथवा उपक्रम आदि अनुयोगद्वार कहलाते हैं। इनकी संख्या को अनुयोगद्वारसंख्या कहते हैं ।
११. अध्ययनों के अंशविशेष को उद्देशक कहते हैं। इनकी संख्या उद्देशकसंख्या कहलाती है ।
१२. शास्त्र के भागविशेष को अध्ययन कहते हैं। इनकी संख्या अध्ययनसंख्या है।
१३. अध्ययनों के समूह रूप शास्त्रांश का नाम श्रुतस्कन्ध है। इनकी संख्या श्रुतस्कन्धसंख्या कहलाती है। १४. अंगों की संख्या को अंगसंख्या कहते हैं। आचारांग आदि आगमों का नाम अंग है।
इस प्रकार से कालिक श्रुतपरिमाणसंख्या का निरूपण जानना चाहिए।
दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या निरूपण
४९५. से किं तं दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा ?
दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा अणेगविहा पण्णत्ता । तं जहा—पज्जवसंखा जाव अणुओगदारसंखा पाहुडसंखा पाहुडियासंखा पाहुडपाहुडियासंखा वत्थुसंखा पुव्वसंखा । से तं दिट्ठिवायसुय
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कालिकश्रुत के रूप में संकलित सूत्रों के नाम आदि विशेष वर्णन के लिए देखिये नन्दीसूत्र ( आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर) सूत्र ८५