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अनुयोगद्वारसूत्र
की तथाविध अवस्था भविष्यकालीन होने के कारण वर्तमान में अविद्यमान होने से असद्रूप है। इस प्रकार असत् सत् से उपमित हुआ है।
सूत्रोक्त तीन गाथायें भव्य जनों के प्रतिबोधनार्थ हैं, यथा—संसार की सभी वस्तुएं अनित्य होने से कभी भी एक जैसी नहीं रहती हैं। अत: स्वाभ्युदय में अहंकार और पर का अनादर नहीं करना चाहिए। असद्-असद्प औपम्यसंख्या
(५) असंतयं असंतएणं उवमिजति–जहा खरविसाणं तहा ससविसाणं । से तं ओवम्मसंखा ।
[४९२-५] अविद्यमान पदार्थ को अविद्यमान पदार्थ से उपमित करना असद्-असद्प औपम्यसंख्या है। जैसा--खर (गधा) विषाण (सींग) है वैसा ही शश (खरगोश) विषाण है और जैसा शशविषाण है वैसा ही खरविषाण है।
इस प्रकार से औपम्यसंख्या का निरूपण जानना चाहिए।
विवेचन- इस विकल्प में उपमानभूत खरविषाण का त्रिकाल में भी सत्त्व न होने से वे असद्रूप हैं, वैसे ही उपमेयभूत शशविषाण भी असद्-रूप हैं। इस प्रकार असत् से असत् उपमित हुआ है। परिमाणसंख्यानिरूपण
४९३. से किं तं परिमाणसंखा ?
परिमाणसंखा दुविहा पण्णत्ता । तं०–कालियसुयपरिमाणसंखा दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा य ।
[४९३ प्र.] भगवन्! परिमाणसंख्या का क्या स्वरूप है ?
[४९३ उ.] आयुष्मन्! परिमाणसंख्या दो प्रकार की कही गई है। जैसे—१. कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या और २. दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या।
विवेचन-- प्रस्तुत सूत्र परिमाणसंख्या के निरूपण की भूमिका है। जिसकी गणना की जाये उसे संख्या और जिसमें पर्यव आदि के परिमाण का विचार किया जाये उसे परिमाणसंख्या कहते हैं। कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या
४९४. से किं तं कालियसुयपरिमाणसंखा ?
कालियसुयपरिमाणसंखा अणेगविहा पण्णत्ता । तं जहा—पजवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पदसंखा पादसंखा गाहासंखा सिलोगसंखा वेढसंखा निज्जुत्तिसंखा अणुओगदारसंखा उद्देसगसंखा अज्झयणसंखा सुयखंधसंखा अंगसंखा । से तं कालियसुयपरिमाणसंखा ।
[४९४ प्र.] भगवन् ! कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या क्या है ? __[४९४ उ.] आयुष्मन्! कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या अनेक प्रकार की कही गई है। यथा—१. पर्यव (पर्याय)संख्या, २. अक्षरसंख्या, ३. संघातसंख्या, ४. पदसंख्या, ५. पादसंख्या, ६. गाथासंख्या, ७. श्लोकसंख्या, ८.