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प्रमाणाधिकारनिरूपण
जानना चाहता है तो वह नगर के मुख्य प्रवेशद्वार के कपाट आदि उपमानों के द्वारा उपमेयभूत अरिहंतों के वक्ष:स्थल आदि को जान लेता है तथा वक्षःस्थल आदि तीर्थंकर के अविनाभावी होने से तीर्थंकर भी उपमित हो जाते हैं । सद्-असद्रूप औपम्यसंख्या
(३) संतयं असंतएणं उवमिज्जइ जहा— संताई नेरइय-तिरिक्खजोणिय - मणूस देवाणं आउयाइं असंतएहिं पलिओवम-सागरोवमेहिं उवमिज्जति ।
[४९२-३] विद्यमान पदार्थ को अविद्यमान पदार्थ से उपमित करना । जैसे नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देवों की विद्यमान आयु के प्रमाण को अविद्यमान पल्योपम और सागरोपम द्वारा बतलाना ।
विवेचन -- इस कथन में नारक आदि जीवों का आयुष्य सद्रूप है और पल्योपम - सागरोपम असद्रूप कल्पना द्वारा परिकल्पित होने से असद्रूप हैं। किन्तु इनके द्वारा ही उनकी आयु बताई जा सकती है। इसीलिए इसको सद्रूप उपमेय और असद्रूप उपमान के रूप में प्रस्तुत किया है। नारकादिकों की आयु उपमेय है और पल्योपम एवं सागरोपम उपमान हैं।
असत्-सत् औपम्यसंख्या
(४) असंतयं संतएणं उवमिज्जति जहा
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पडत
परिजूरियपेरंतं चलंतबेंट निच्छीरं । पत्तं वसणप्पत्तं कालप्पत्तं भणइ गाहं ॥ १२० ॥ जह तुब्भे तह अम्हे, तुम्हे वि य होहिहा जहा अम्हे । अप्पाहेति पडतं पंडुयपत्तं किसलयाणं ॥ १२१ ॥ वि अत्थि वि य होही उल्लावो किसल - पंडुपत्ताणं । उवमा खलु एस कया भवियजणविबोहणट्ठा ॥ १२२ ॥
[४९२-४] अविद्यमान असवस्तु को विद्यमान सद्वस्तु से उपमित करने को असत् - सत् औपम्यसंख्या कहते हैं । वह इस प्रकार है
सर्व प्रकार से जीर्ण, डंठल से टूटे, वृक्ष से नीचे गिरे हुए, निस्सार और (वृक्ष से वियोग हो जाने से ) दुःखित ऐसे पत्ते ने बसंत समय प्राप्त नवीन पत्ते (किसलय कोंपल) से कहा
किसी गिरते हुए पुराने जीर्ण पीले पत्ते ने नवोद्गत किसलयों कोंपलों से कहा—इस समय जैसे तुम हो, हम भी पहले वैसे ही थे तथा इस समय जैसे हम हो रहे हैं, वैसे ही आगे चलकर तुम भी हो जाओगे ।
यहां जो जीर्ण पत्तों और किसलयों के वार्तालाप का उल्लेख किया गया है, वह न तो कभी हुआ है, न होता है और न होगा, किन्तु भव्य जनों के प्रतिबोध के लिए उपमा दी गई है। १२०, १२१, १२२
विवेचन — प्रस्तुत दृष्टान्त में 'जह तुब्भे तह अम्हे' इस पद में उपमाभूत किसलय अवस्था तत्काल विद्यमान होने से सद्रूप है और उपमेयभूत तथाविध जीर्ण आदि रूप पत्रावस्था अविद्यमान होने से असद्रूप है तथा 'तुम्हे वि य होहिहा जहा अम्हे' यहां जीर्ण-शीर्ण आदि पत्रावस्था तत्कालवर्ती होने से सद्रूप है और किसलयों