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________________ ३८२ अनुयोगद्वारसूत्र ये तीनों प्रकार के जीव भावशंखता के कारण होने से ज्ञशरीर और भव्यशरीर इन दोनों से व्यतिरिक्त द्रव्यशंख रूप हैं। द्विभविक, त्रिभविक, चतुर्भविक आदि जीवों को द्रव्यशंख इसलिए नहीं कहते हैं कि ऐसे जीव भावशंखता के अव्यवहित कारण नहीं हैं । वे मरकर प्रथम भव में शंख की पर्याय में उत्पन्न नहीं होकर दूसरी-दूसरी पर्यायों में उत्पन्न होते हैं। जबकि एकभविक भावशंखता के प्रति अव्यवहित कारण है। वह जीव मरकर निश्चित रूप से शंख की पर्याय में ही उत्पन्न होने वाला है। इसीलिए उसकी द्रव्यशंख यह संज्ञा है।' ४८८. एगभविए णं भंते ! एगभविए त्ति कालतो केवचिरं होति ? जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी । [४८८ प्र.] भगवन् ! एकभविक जीव 'एकभविक' ऐसा नाम वाला कितने समय तक रहता है ? [४८८ उ.] आयुष्मन् ! एकभविक जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट एक पूर्वकोटि पर्यन्त (एकभविक नाम वाला) रहता है। विवेचन- सूत्र में एकभविक द्रव्यशंख की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति क्रमशः अन्तर्मुहूर्त और एक पूर्वकोटि की इसलिए बताई है कि पृथ्वी आदि किसी एक भव में अन्तर्मुहूर्त तक जीवित रहकर तदनन्तर जो मरण करके शंखपर्याय में उत्पन्न हो जाता है. वह जीव अन्तर्महर्त तक एकभविक शंख कहलाता है। जीवों की कम से कम आयु अन्तर्मुहूर्त की होती है, इसीलिए जघन्य पद में अन्तर्मुहूर्त का ग्रहण किया है। जो जीव मत्स्य आदि किसी एक भव में उत्कृष्ट रूप से एक पूर्वकोटि तक जीवित रहकर मरते ही शंखपर्याय में उत्पन्न होता है, वह पूर्वकोटि तक एकभविक शंख कहलाता है। क्योंकि जिस जीव की पूर्वकोटि से अधिक आयु होती है वह असंख्यात वर्ष की आयु वाला होने से मरकर देवपर्याय में ही उत्पन्न होता है, शंखपर्याय में नहीं। इस कारण उत्कृष्ट पद में पूर्वकोटि का कथन किया है। ४८९. बद्धाउए णं भंते ! बद्धाउए त्ति कालतो केवचिरं होति ? जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडीतिभागं । [४८९ प्र.] भगवन् ! बद्धायुष्क जीव बद्धायुष्क रूप में कितने काल तक रहता है ? [४८९ उ.] आयुष्मन् ! (बद्धायुष्क जीव बद्धायुष्क रूप में) जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट एक पूर्वकोटि वर्ष के तीसरे भाग तक रहता है। विवेचन— सूत्रगत कथन का आशय यह है कि जबसे कोई जीव भुज्यमान आयु में रहते परभव की आयु का बंध कर लेता है, तब से उसे बद्धायुष्क कहते हैं। यहां बद्धायुष्क द्रव्यशंख के समय का विचार किया जा रहा है। अतएव भुज्यमान आयु जघन्य से अन्तर्मुहूर्त जब शेष रह जाये, उस समय कोई जीव शंख योनि की आयु का बंध करे, उसकी अपेक्षा बद्धायुष्क का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त बतलाया है और भुज्यमान आयु के पूर्वकोटि के त्रिभाग बाकी रहने पर जो जीव परभव की आयु का बंध करता है, उसकी अपेक्षा पूर्वकोटि का त्रिभाग समय कहा है। १. अनुयोग. मलधारीयावृत्ति पृ. २३१
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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