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अनुयोगद्वारसूत्र
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भवति । से तं आगमओ दव्वसंखा ।
[४८३-५] तीनों शब्द नय (शब्द, समभिरूढ और एवंभूत नय) अनुपयुक्त ज्ञायक को अवस्तु — असत् मानते हैं। क्योंकि यदि ज्ञायक है तो अनुपयुक्त (उपयोगरहित) नहीं होता है और यदि अनुपयुक्त हो तो वह ज्ञायक नहीं होता है। इसलिए आगमद्रव्यशंख संभव नहीं है।
यह आगमद्रव्यशंख का स्वरूप है।
विवेचन- आगमद्रव्य-आवश्यक के वर्णन में नयदृष्टियों का विस्तार से विचार किया जा चुका है। अतः उसी तरह आवश्यक के स्थान पर शंख शब्द रखकर यहां भी समझ लेना चाहिए।
नोआगमद्रव्यसंख्या निरूपण
४८४. से किं तं नोआगमतो दव्वसंखा ?
नोआगमतो दव्वसंखा तिविहा प० । तं० – जाणयसरीरदव्वसंखा भवियसरीरदव्वसंखा जाणयसरीरभवियसरीरवतिरित्ता दव्वसंखा ।
[४८४ प्र.] भगवन्! नोआगमद्रव्यसंख्या का क्या स्वरूप है ?
[ ४८४ उ.] आयुष्मन् ! नोआगमद्रव्यसंख्या के तीन भेद हैं- १. ज्ञायकशरीरद्रव्यसंख्या, २. भव्यशरीरद्रव्यसंख्या, ३. ज्ञायकशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्यसंख्या ।
४८५. से किं तं जाणगसरीरदव्वसंखा ?
जाणसरीरदव्वसंखा संखा ति पयत्थाहिकार- जाणगस्स जं सरीरयं ववगय-चुय- चइत चत्तदेहं जीवविप्पजढं जाव अहो ! णं इमेणं सरीरसमूसएणं संखा ति पयं आघवितं जाव उवदंसियं, जहा को दिट्टंतो ? अयं घयकुंभे आसि । से तं जाणगसरीरदव्वसंखा ।
[ ४८५ प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीरद्रव्यसंख्या का क्या स्वरूप है ?
[४८५ उ.] आयुष्मन्! संख्या इस पद के अर्थाधिकार के ज्ञाता का वह शरीर, जो व्यपगत - चैतन्य से रहित हो गया हो, च्युत-च्यवित-त्यक्त देह यावत् जीवरहित शरीर को देखकर कहना — अहो ! इस शरीर रूप पुद्गलसंघात (समुदाय) ने संख्या पद को (गुरु से ) ग्रहण किया था, पढ़ा था यावत् उपदर्शित किया था— नय और युक्तियों द्वारा शिष्यों को समझाया था, ( उसका वह शरीर ज्ञायकशरीरद्रव्यसंख्या है।)
[प्र.] इसका कोई दृष्टान्त है ?
[उ.] ( हां, दृष्टान्त है —— जैसे घड़े में से घी निकालने के बाद भी कहा जाता है कि) यह घी का घड़ा है। यह ज्ञायकशरीरद्रव्यसंख्या का स्वरूप है ।
विवेचन — प्रस्तुत सूत्रों में निक्षेपदृष्टि से नोआगमद्रव्यसंख्या के तीन भेद करके प्रथम नोआगमज्ञायकशरीर भेद का स्वरूप बतलाया है। यहां आत्मा का शरीर में आरोप करके जीव के त्यक्त शरीर को नो आगमद्रव्य कहा गया है।
चुय - चइत्त- चत्तदेहं का अर्थ- विपाकवेदन द्वारा आयुकर्म के क्षय से पके हुए फल के समान अपने