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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण ३७९ [४८२ प्र.] भगवन् ! आगमद्रव्यशंख का क्या स्वरूप है ? [४८२ उ.] आयुष्मन् ! आगमद्रव्यशंख (संख्या) का स्वरूप इस प्रकार है-जिसने शंख (संख्या) यह पद सीख लिया, हृदय में स्थिर किया, जित किया-तत्काल स्मरण हो जाये ऐसा याद किया, मित किया—मनन किया, अधिकृत कर लिया अथवा (आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी पूर्वक जिसको सर्व प्रकार से बार-बार दुहरा लिया) यावत् निर्दोष स्पष्ट स्वर से शुद्ध उच्चारण किया तथा गुरु से वाचना ली, जिससे वाचना, पृच्छना, परावर्तना एवं धर्मकथा से युक्त भी हो परन्तु जो अर्थ का अनुचिन्तन करने रूप अनुप्रेक्षा से रहित हो, उपयोग न होने से वह आगम से द्रव्यशंख (संख्या) कहलाता है। क्योंकि सिद्धान्त में 'अनुपयोगो द्रव्यम्'–उपयोग से शून्य को द्रव्य कहा है। _ विवेचन— प्रस्तुत सूत्रों में द्रव्यसंख्या के भेदों का कथन करके प्रथम भेद आगमद्रव्यशंख (संख्या) का स्वरूप बतलाया है। कोई पुरुष शंख (संख्या) पद का भली-भांति सर्व प्रकार से ज्ञाता है, किन्तु जब उसके उपयोग से रहित है अर्थात् उसके चिन्तन, मनन, ध्यान, विचार में स्थित नहीं है, तब उसकी आगमद्रव्यशंख संज्ञा है। यद्यपि वर्तमान में उपयोग रहित है फिर भी उस उपयोग के संस्कार सहित होने से (भूतपप्रज्ञापननय की अपेक्षा) आगम शब्द का प्रयोग किया जाता है। आगम द्रव्यशंख (संख्या) विषयक नयदृष्टियां इस प्रकार हैंआगमद्रव्यसंख्या : नयदृष्टियां ४८३. (१) [णेगमस्स] एक्को अणुवउत्तो आगमतो एका दव्वसंखा, दो अणुवउत्ता आगमतो दो दव्वसंखाओ, तिन्नि अणुवउत्ता आगमतो तिन्नि दव्वसंखाओ, एवं जावतिया अणुवउत्ता तावतियाओ [णेगमस्स आगमतो] दव्वसंखाओ । __ [४८३-१] (नैगमनय की अपेक्षा) एक अनुपयुक्त आत्मा एक आगमद्रव्यशंख (संख्या), दो अनुपयुक्त आत्मा दो आगमद्रव्यशंख, तीन अनुपयुक्त आत्मा तीन आगमद्रव्यशंख हैं। इस प्रकार जितनी अनुपयुक्त आत्मायें हैं उतने ही (नैगमनय की अपेक्षा आगम) द्रव्यशंख हैं। (२) एवामेव ववहारस्स वि । [४८३-२] व्यवहारनय नैगमनय के समान ही आगमद्रव्यशंख को मानता है। (३) संगहस्स एको वा अणेगा वा अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा [आगमओ] दव्वसंखा वा दव्वसंखाओ वा [सा एगा दव्वसंखा] । [४८३-३] संग्रहनय (सामान्य-मात्र को ग्रहण करने वाला होने से) एक अनुपयुक्त आत्मा (आगम से) एक द्रव्यशंख और अनेक अनुपयुक्त आत्मायें अनेक आगमद्रव्यशंख, ऐसा स्वीकार नहीं करता किन्तु सभी को एक ही आगमद्रव्यशंख मानता है। (४) उज्जुसुयस्स [ एगो अणुवउत्तो] आगमओ एका दव्वसंखा, पुहत्तं णेच्छति । [४८३-४] ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा (एक अनुपयुक्त आत्मा) एक आगमद्रव्यशंख है । वह भेद को स्वीकार नहीं करता है। (५) तिण्हं सद्दणयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू, कम्हा ? जति जाणए अणुवउत्ते ण
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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