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तदुभयाण वा संखा ति णामं कज्जति । से तं नामसंखा ।
[४७८ प्र.] भगवन्! नामसंख्या का क्या स्वरूप है ?
[४७८ उ.] आयुष्मन् ! जिस जीव का अथवा अजीव का अथवा जीवों का अथवा अजीवों का अथवा तदुभय (एक जीव, एक अजीव दोनों) का अथवा तदुभयों ( अनेक जीवों- अजीवों दोनों) का संख्या ऐसा नामकरण कर लिया जाता है, उसे नामसंख्या कहते हैं ।
अनुयोगद्वारसूत्र
४७९. से किं तं ठवणासंखा ?
ठवणासंखा जण्णं कट्ठकम्मे वा पोत्थकम्मे वा चित्तकम्मे वा लेप्यकम्मे वा गंथिकम्मे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एक्को वा अणेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा संखा ति ठवणा ठवेज्जति । से तं ठवणासंखा ।
[४७९ प्र.] भगवन्! स्थापनासंख्या का क्या स्वरूप है ?
[४७९ उ.] आयुष्मन् ! जिस काष्ठकर्म में, पुस्तकर्म में या चित्रपट में या लेप्यकर्म में अथवा ग्रन्थिकर्म में अथवा वेढित में अथवा पूरित में अथवा संघातिम में अथवा अक्ष में अथवा वराटक में अथवा एक या अनेक में सद्भूतस्थापना या असद्भूतस्थापना द्वारा 'संख्या' इस प्रकार का स्थापन (आरोप) कर लिया जाता है, वह स्थापनासंख्या है।
४८०. नाम—–—ठवणाणं को पतिविसेसो ?
नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा ।
[४८० प्र.] भगवन् ! नाम और स्थापना में क्या अन्तर है ?
[४८० उ. ] आयुष्मन् ! नाम यावत्कथिक ( वस्तु के रहने पर्यन्त) होता है लेकिन स्थापना इत्वरिक (स्वल्पकालिक ) भी होती है और यावत्कथिक भी होती है।
विवेचन— नाम और स्थापना संख्या का विशेष स्पष्टीकरण नाम- आवश्यक एवं स्थापना - आवश्यक के अनुसार समझ लेना चाहिए। नाम और स्थापना आवश्यक सम्बन्धी वर्णन पूर्व में विस्तार से किया जा चुका है। द्रव्यसंख्या
४८१. से किं तं दव्वसंखा ?
दव्वसंखा दुविहा पं० । तं०—आगमओ य नोआगमतो य ।
[४८१ प्र.] भगवन्! द्रव्यशंख का क्या तात्पर्य है ?
[४८१ उ.] आयुष्मन्! द्रव्यशंख दो प्रकार का कहा है, जैसे—१. आगमद्रव्यशंख, २. नोआगमद्रव्यशंख । ४८२. से किं तं आगमओ दव्वसंखा ?
दव्वसंखा जस्स णं संखा ति पदं सिक्खितं ठियं जियं मियं परिजियं जाव कंगिण्ह (कंठोट्ट) विप्पमुक्कं ( गुरुवायणोवगयं), से णं तत्थ वायणाए पुच्छणार परियट्टाए धम्मकहाए, नो अणुप्पेहाए, कम्हा ? अणुवओगो दव्वमिति कट्टु ।