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प्रमाणाधिकारनिरूपण
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ऐसा कथन करने वाले नैगमनय से संग्रहनय ने कहा— जो तुम कहते हो कि छहों के प्रदेश हैं, वह उचित नहीं है । क्यों (नहीं है) ?
इसलिए कि जो देश का प्रदेश है, वह उसी द्रव्य का है।
इसके लिए कोई दृष्टान्त है ?
हां दृष्टान्त है। जैसे मेरे दास ने गधा खरीदा और दास मेरा है तो गधा भी मेरा है। इसलिए ऐसा मत कहो कि छहों के प्रदेश हैं, यह कहो कि पांच के प्रदेश हैं । यथा - १. धर्मास्तिकाय का प्रदेश, २. अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, ३. आकाशास्तिकाय का प्रदेश, ४. जीवास्तिकाय का प्रदेश और ५. स्कन्ध का प्रदेश ।
इस प्रकार कहने वाले संग्रहनय से व्यवहारनय ने कहा- तुम कहते हो कि पांचों के प्रदेश हैं, वह सिद्ध नहीं होता है।
क्यों (सिद्ध नहीं होता है ) ?
प्रत्युत्तर में व्यवहारनयवादी ने कहा— जैसे पांच गोष्ठिक पुरुषों ( भागीदारों) का कोई द्रव्य सामान्य होता है । यथा— हिरण्य, स्वर्ण, धन, धान्य आदि (वैसे पांचों के प्रदेश सामान्य होते) तो तुम्हारा कहना युक्त था कि पांचों के प्रदेश हैं । (परन्तु ऐसा है नहीं) इसलिए ऐसा मत कहो कि पांचों के प्रदेश हैं, किन्तु कहो — प्रदेश पांच प्रकार का है, जैसे—१. धर्मास्तिकाय का प्रदेश, २. अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, ३ . आकाशास्तिकाय का प्रदेश, ४. जीवास्तिकाय का प्रदेश और ५. स्कन्ध का प्रदेश ।
व्यवहारनय के ऐसा कहने पर ऋजुसूत्रनय ने कहा- तुम भी जो कहते हो कि पांच प्रकार के प्रदेश हैं, वह नहीं बनता । क्योंकि यदि पांच प्रकार के प्रदेश हैं, यह कहो तो एक-एक प्रदेश पांच-पांच प्रकार का हो जाने से तुम्हारे मत से पच्चीस प्रकार का प्रदेश होगा। इसलिए ऐसा मत कहो कि पांच प्रकार का प्रदेश है। यह कहो कि प्रदेश भजनीय है—१. स्यात् धर्मास्तिकाय का प्रदेश, २. स्यात् अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, ३. स्यात् आकाशास्तिकाय का प्रदेश, ४. स्यात् जीव का प्रदेश, ५. स्यात् स्कन्ध का प्रदेश है।
इस प्रकार कहने वाले ऋजुसूत्रनय से संप्रति शब्दनय ने कहा—तुम कहते हो कि प्रदेश भजनीय है, यह कहना योग्य नहीं है।
क्योंकि प्रदेश भजनीय है, ऐसा मानने से तो धर्मास्तिकाय का प्रदेश अधर्मास्तिकाय का भी, आकाशास्तिकाय का भी, जीवास्तिकाय का भी और स्कन्ध का भी प्रदेश हो सकता है ।
इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय का प्रदेश धर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश, जीवास्तिकाय का प्रदेश एवं स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है।
अधर्मास्तिकाय का,
जीवास्तिकाय का, स्कन्ध का प्रदेश
आकाशास्तिकाय का प्रदेश भी धर्मास्तिकाय का, हो सकता है।
जीवास्तिकाय का प्रदेश भी धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय का प्रदेश या स्कन्ध का प्रदेश
हो सकता है।
स्कन्ध का प्रदेश भी धर्मास्तिकाय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश अथवा जीवास्तिकाय का प्रदेश हो सकता है।