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________________ ३७२ अनुयोगद्वारसूत्र एवं वयंतं संगहं ववहारो भणइ—जं भणसि—पंचण्हं पएसो तं ण भवइ, कम्हा ? जइ जहा पंचण्डं गोट्ठियाणं केइ दव्वजाए सामण्णे, तं जहा—हिरण्णे वा सुवण्णे वा धणे वा धण्णे वा, तो जुत्तं वत्तुं जहा पंचण्हं पएसो ? तं मा भणाहि—पंचण्हं पएसो, भणाहिपंचविहो पएसो, तं जहा—धम्मपदेसो अहम्मपदेसो आगासपदेसो जीवपदेसो खंधपदेसो । एवं वदंतं ववहारं उज्जुसुओ भणति—जं भणसि—पंचविहो पदेसो तं न भवइ, कम्हा ? जइ ते पंचविहो पएसो एवं ते एक्केक्को पएसो पंचविहो एवं ते पणुवीसतिविहो पदेसो भवति, तं मा भणाहि—पंचविहो पएसो, भणाहि—भतियव्वो पदेसो-सिया धम्मपदेसो सिया अधम्मपदेसो सिया आगासपदेसो सिया जीवपदेसो सिया खंधपदेसो । एवं वयंतं उज्जुसुयं संपतिसद्दणओ भणति—जं भणसि भइयव्वो पदेसो तं न भवति, कम्हा ? जइ ते भइयव्वो पदेसो एवं ते धम्मपदेसो वि सिया अधम्मपदेसो सिया आगासपदेसो सिया जीवपदेसो सिया खंधपदेसो १, अधम्मपदेसो वि सिया धम्मपदेसो सिया आगासपदेसो सिया जीवपएसो सिया खंधपएसो २, आगासपएसो वि सिया धम्मपदेसो सिया अहम्मपएसो सिया जीवपएसो सिया खंधपएसो ३, जीवपएसो वि सिया धम्मपएसो सिया अधम्मपएसो सिया आगासपएसो सिया खंधपएसो ४, खंधपएसो वि सिया धम्मपदेसो सिया अधम्मपदेसो सिया आगासपदेसो सिया जीवपदेसो ५, एवं ते अणवत्था भविस्सई, तं मा भणाहिभइयव्वो पदेसो, भणाहि—धम्मे पदेसे से पदेसे धम्मे, अहम्मे पदेसे से पदेसे अहम्मे, आगासे पदेसे से पदेसे आगासे, जीव पदेसे से पदेसे णोजीवे, खंधे पदेसे से पदेसे णोखंधे । एवं वयंतं सद्दणयं समभिरूढो भणति—जं भणसि—धम्मे पदेसे से पदेसे धम्मे जाव खंधे पदेसे से पदेसे नोखंधे तं न भवइ, कम्हा ? एत्थ दो समासा भवंति, तं जहा— तप्पुरिसे य कम्मधारए य, तं ण णजइ कतरेणं समासेणं भणसि किं तप्पुरिसेणं किं कम्मधारएणं ? जइ तप्युरिसेणं भणसि तो मा एवं भणाहि, अह कम्मधारएणं भणसि तो विसेसओ भणाहि धम्मे य से पदेसे य से से पदेसे धम्मे, अहम्मे य से पदेसे य से से पदेसे अहम्मे, आगासे य से पदेसे य से से पदेसे आगासे, जीवे य से पदेसे य से से पदेसे नोजीवे, खंधे य से पदेसे य से से पदेसे नोखंधे । एवं वयंतं संपयं समभिरूढं एवंभूओ भणइ-जं जं भणसि तं तं सव्वं कसिणं पडिपुण्णं निरवसेसं एगगहणगहितं देसे वि मे अवत्थू पदेसे वि मे अवत्थू । से तं पदेसदिटुंतेणं । से तं णयप्पमाणे । [४७६ प्र.] भगवन् ! प्रदेशदृष्टान्त द्वारा नयों के स्वरूप का प्रतिपादन किस प्रकार होता है ? [४७६ उ.] आयुष्मन् ! प्रदेशों के दृष्टान्त द्वारा नयों का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहिए नैगमनय के मत से छह द्रव्यों के प्रदेश होते हैं। जैसे—१. धर्मास्तिकाय का प्रदेश, २. अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, ३. आकाशास्तिकाय का प्रदेश, ४. जीवास्तिकाय का प्रदेश, ५. स्कन्ध का प्रदेश और ६. देश का प्रदेश।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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