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अनुयोगद्वारसूत्र त्रिलोकवर्ती जीवों द्वारा सहर्ष वंदित, पूजित सर्वज्ञ, सर्वदर्शी अरिहंत भगवन्तों द्वारा प्रणीत आचारांग यावत् दृष्टिवाद पर्यन्त द्वादशांग रूप गणिपिटक लोकोत्तरिक आगम हैं।
४७०. अहवा आगमे तिविहे पण्णत्ते । तं जहा—सुत्तागमे य अत्थागमे य तदुभयागमे य।
अहवा आगमे तिविहे पण्णत्ते । तं—अत्तागमे अणंतरागमे परंपरागमे य ।
तित्थगराणं अत्थस्स अत्तागमे, गणहराणं सुत्तस्स अत्तागमे अत्थस्स अणंतरागमे, गणहरसीसाणं सुत्तस्स अणंतरागमे अत्थस्स परंपरागमे, तेण परं सुत्तस्स वि अत्थस्स वि णो अत्तागमे णो अणंतरागमे परंपरागमे । से तं लोगुत्तरिए । से तं आगमे । से तं णाणगुणप्पमाणे।
[४७०] अथवा (प्रकारान्तर से लोकोत्तरिक) आगम तीन प्रकार का कहा है। जैसे—१. सूत्रागम, २. अर्थागम और ३. तदुभयागम।
अथवा (लोकोत्तरिक) आगम तीन प्रकार का है। यथा—१. आत्मागम, २. अनन्तरागम और ३. परम्परागम।
अर्थागम तीर्थंकरों के लिए आत्मागम है। सूत्र का ज्ञान गणधरों के लिए आत्मागम और अर्थ का ज्ञान अनन्तरागम रूप है। गणधरों के शिष्यों के लिए सूत्रज्ञान अनन्तरागम और अर्थ का ज्ञान परम्परागम है।
तत्पश्चात् सूत्र और अर्थ रूप आगम आत्मागम भी नहीं है, अनन्तरागम भी नहीं है, किन्तु परम्परागम है। इस प्रकार से लोकोत्तर आगम का स्वरूप जानना चाहिए।
यही आगम और ज्ञानगुणप्रमाण का वर्णन है।
विवेचन— प्रस्तुत प्रश्नोत्तरों में ज्ञानगुणप्रमाण के अन्तिम भेद आगम का वर्णन करके अन्त में उसकी समाप्ति का उल्लेख किया है।
प्राचीनकाल में जिज्ञासु श्रद्धाशील व्यक्ति धर्मशास्त्र के रूप में माने जाने वाले अपने-अपने साहित्य को कंठोपकंठ प्राप्त करके स्मरण रखते थे। इसीलिए उन धर्मशास्त्रों की श्रुत यह संज्ञा है। जैन परम्परा के शास्त्र भी प्राचीनकाल में श्रुत या सम्यक् श्रुत के नाम से प्रसिद्ध थे। श्रुत शब्द का अर्थ है सुना हुआ। लेकिन इस शब्द से शास्त्रों का विशिष्ट महात्म्य प्रकट नहीं हो सकने से आगम शब्द प्रयुक्त किया जाने लगा।
'आगम' शब्द की व्याख्या- ग्रन्थों में निरुक्तिमूलक से लेकर कर्ता की विशेषताओं आदि का बोध कराते हुए की गई आगम शब्द की व्याख्याओं का सारांश इस प्रकार है
(गुरुपारम्पर्येण) आगच्छतीत्यगमः- गुरुपरम्परा से जो चला आ रहा है, उसे आगम कहते हैं । इस निरुक्ति से यह स्पष्ट हुआ कि आगम शब्द कंठोपकंठ श्रुतपरम्परा का वाचक है तथा श्रुत और आगम शब्द एकार्थवाची हैं।
- वर्ण्य विषय का परिज्ञान कराने की दृष्टि से आगम शब्द की लाक्षणिक व्याख्या यह है—आ समन्ताद् गम्यन्ते ज्ञायन्ते जीवादयः पदार्था अनेनेति आगमः—जीवादि पदार्थ जिसके द्वारा भलीभांति जाने जायें वह आगम है। अर्थात् जिसके द्वारा अनन्त धर्मों से विशिष्ट जीव-अजीव आदि पदार्थ जाने जाते हैं ऐसी आज्ञा आगम है। अथवा वीतराग सर्वज्ञ देव द्वारा कहे गये षड् द्रव्य और सप्त तत्त्व आदि का सम्यक् श्रद्धान, ज्ञान तथा व्रतादि का अनुष्ठान रूप चारित्र इस प्रकार से रत्नत्रय का स्वरूप जिसमें प्रतिपादित किया गया है, उसको आगम या शास्त्र कहते