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अनुयोगद्वारसूत्र
अब उपमानप्रमाण के दूसरे भेद वैधोपनीत का कथन करते हैंवैधोपनीत उपमानप्रमाण
४६३. से किं तं वेहम्मोवणीए ? वेहम्मोवणीए तिविहे पण्णत्ते । तं जहा—किंचिवेहम्मे पायवेहम्मे सव्ववेहम्मे । [४६३ प्र.] भगवन् ! वैधोपनीत का तात्पर्य क्या है ?
[४६३ उ.] आयुष्मन् ! वैधोपनीत के तीन प्रकार हैं, यथा—१. किंचित्वैधोपनीत, २. प्राय:वैधोपनीत और ३. सर्ववैधोपनीत।
४६४. से किं तं किंचिवेहम्मे ?
किंचिवेहम्मे जहा सामलेरो न तहा बाहुलेरो, जहा बाहुलेरो न तहा सामलेरो । से तं किंचिवेहम्मे ।
[४६४ प्र.] भगवन् ! किंचित्वैधोपनीत का क्या स्वरूप है ?
[४६४ उ.] आयुष्मन् ! किसी धर्मचिशेष की विलक्षणता प्रकट करने को किंचित्वैधोपनीत कहते हैं। वह इस प्रकार—जैसा शबला गाय (चितकबरी गाय) का बछड़ा होता है वैसा बहुला गाय (एक रंग वाली गाय) का बछड़ा नहीं और जैसा बहुला गाय का बछड़ा वैसा शबला गाय का नहीं होता है। यह किंचित्वैधोपनीत का स्वरूप जानना चाहिए।
४६५. से किं तं पायवेहम्मे ?
पायवेहम्मे जहा वायसो न तहा पायसो, जहा पायसो न तहा वायसो । से तं पायवेहम्मे ।
[४६५ प्र.] भगवन्! प्राय:वैधोपनीत किसे कहते हैं ?
[४६५ उ.] आयुष्मन्! अधिकांश रूप में अनेक अवयवगत विसदृशता प्रकट करने को प्राय:वैधोपनीत कहते हैं । यथा—जैसा वायस (कौआ) है वैसा पायस (खीर) नहीं होता और जैसा पायस होता है वैसा वायस नहीं। यही प्राय:वैधोपनीत है।
४६६. से किं तं सव्ववेहम्मे ?
सव्ववेहम्मे नत्थि, तहा वि तेणेव तस्स ओवम्मं कीरइ, जहा—णीएणं णीयसरिसं कयं, दासेणं दाससरिसं कयं, काकेण काकसरिसं कयं, साणेणं साणसरिसं कयं, पाणेणं पाणसरिसं कयं । से तं सव्ववेहम्मे । से तं वेहम्मोवणीए । से तं ओवम्मे ।।
[४६६ प्र.] भगवन् ! सर्ववैधोपनीत का क्या स्वरूप है ?
[४६६ उ.] आयुष्मन् ! जिसमें किसी भी प्रकार की सजातीयता न हो उसे सर्ववैधम्यापनात कहते हैं। यद्यपि सर्ववैधर्म्य में उपमा नहीं होती है, तथापि उसी की उपमा उसी को दी जाती है, जैसे—नीच ने नीच के समान, दास .. ने दांस के सदृश, कौए ने कौए जैसा, श्वान (कुत्ता) ने श्वान जैसा और चांडाल ने चांडाल के सदृश किया है। यही