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अनुयोगद्वारसूत्र प्रायः और सर्वतः इन प्रकारों द्वारा व्यक्त होता है। इसी अपेक्षा से इनके तीन-तीन अवान्तर भेद हो जाते हैं, जिनका स्पष्टीकरण करते हैंसाधोपनीत उपमान
४५९. से किं तं साहम्मोवणीए ? साहम्मोवणीए तिविहे पण्णत्ते । तं०—किंचिसाहम्मे पायसाहम्मे सव्वसाहम्मे य । [४५९ प्र.] भगवन् ! साधोपनीत-उपमान किसे कहते हैं ?
[४५९ उ.] आयुष्मन् ! जिन पदार्थों की सदृशता उपमा द्वारा सिद्ध की जाये उसे साधोपनीत कहते हैं। उसके तीन प्रकार हैं—१. किंचित्साधोपनीत, २. प्रायःसाधोपनीत और ३. सर्वसाधोपनीत ।
४६०. से किं तं किंचिसाहम्मे ?
किंचिसाहम्मे जहा मंदरो तहा सरिसवो जहा सरिसवो तहा मंदरो, जहा समुद्दो तहा गोप्पयं जहा गोप्पयं तहा समुद्दो, जहा आइच्चो तहा खजोतो, जहा खजोतो तहा आइच्चो, जहा चंदो तहा कुंदो जहा कुंदो तहा चंदो । से तं किंचिसाहम्मे ।
[४६० प्र.] भगवन् ! किंचित्साधोपनीत किसे कहते हैं ?
[४६० उ.] आयुष्मन् ! जैसा मंदर (मेरु) पर्वत है वैसा ही सर्षप (सरसों) है और जैसा सर्षप है वैसा ही मन्दर है। जैसा समुद्र है, उसी प्रकार गोष्पद—(जल से भरा गाय के खुर का निशान) है और जैसा गोष्पद है, वैसा ही समुद्र है तथा जैसा आदित्य सूर्य है, वैसा खद्योत—जुगुनू है । जैसा खद्योत है, वैसा आदित्य है । जैसा चन्द्रमा है, वैसा कुंद पुष्प है और जैसा कुंद है, वैसा चन्द्रमा है। यह किंचित्साधोपनीत है।
४६१. से किं तं पायसाहम्मे ? पायसाहम्मे जहा गो तहा गवयो, जहा गवयो तहा गो । से तं पायसाहम्मे । [४६१ प्र.] भगवन्! प्राय:साधोपनीत किसे कहते हैं ? ।
[४६१ उ.] आयुष्मन् ! जैसी गाय है वैसा गवय (रोझ) होता है और जैसा गवय है, वैसी गाय है। यह प्रायःसाधोपनीत है।
४६२. से किं तं सव्वसाहम्मे ?
सव्वसाहम्मे ओवम्म णत्थि, तहा वि तेणेव तस्स ओवम्मं कीरइ, जहा—अरहंतेहिं अरहंतसरिसं कयं, एवं चक्कवट्टिणा चक्कवट्टिसरिसं कयं, बलदेवेण बलदेवसरिसं कयं, वासुदेवेण वासुदेवसरिसं कयं, साहुणा साहुसरिसं कयं । से तं सव्साहम्मे । से तं साहम्मोवणीए ।
[४६२ प्र.] सर्वसाधोपनीत किसे कहते हैं ?
[४६२ उ.] आयुष्मन्! सर्वसाधर्म्य में उपमा नहीं होती, तथापि उसी से उसको उपमित किया जाता है। वह इस प्रकार—अरिहंत ने अरिहंत के सदृश, चक्रवर्ती ने चक्रवर्ती के जैसा, बलदेव ने बलदेव के सदृश, वासुदेव ने