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________________ माणाधिकारनिरूपण किया गया है। यहां सुवृष्टि हुई है, यह पक्ष है, तृण, धान्य जलाशयादि ये उसके कार्य होने से हेतु और अन्यदेशवत् यह अन्वयदृष्टान्त है। इसी प्रकार ये तीन-तीन ( पक्ष, हेतु और दृष्टान्त) सर्वत्र जानना चाहिए । ३५१ २. वर्तमानकालसम्बन्धी वस्तु को ग्रहण करने वाले अनुमान को प्रत्युत्पन्नकालग्रहणअनुमान कहते हैं। जैसे—' इस प्रदेश में सुभिक्ष है' क्योंकि साधुओं को प्रचुर भोजनादि की प्राप्ति देखने में आती है। इसमें सुभिक्ष साध्य है और भोजनादि की प्राप्ति हेतु है । ३. भविष्यत्कालसम्बन्धी विषय जिसका ग्राह्य-साध्य हो, उसे अनागतकालग्रहण अनुमान कहते हैं । यथा इस देश में सुवृष्टि होगी क्योंकि वृष्टिनिमित्तक आकाश की निर्मलता आदि लक्षण दिख रहे हैं, उस देश की तरह । इस अनुमानप्रयोग में सुवृष्टि साध्य है, आकाश की निर्मलता दिखना हेतु और उस देश की तरह दृष्टान्त है। सुवृष्टि होने के अनुमापक नक्षत्र इस प्रकार हैं— वरुण के नक्षत्र– १. पूर्वाषाढा, २. उत्तराभाद्रपद, ३. आश्लेषा, ४. आर्द्रा, ५. मूल, ६. रेवती और ७. शतभिष । महेन्द्र के नक्षत्र — १. अनुराधा, २. अभिजित, ३. ज्येष्ठा, ४. उत्तराषाढ़ा, ५. धनिष्ठा, ६. रोहिणी और ७. श्रवण । प्रतिकूलविशेषदृष्ट- साधर्म्यवत् अनुमान के उदाहरण ४५४. एएसिं चेव विवच्चासे तिविहं गहणं भवति । तं जहा— तीतकालगहणं पडुप्पण्णकालगहणं अणागयकालगहणं । [४५४] इनकी विपरीतता में भी तीन प्रकार से ग्रहण होता है— अतीतकालग्रहण, प्रत्युत्पन्नकालग्रहण और अनागतकालग्रहण | ४५५. से किं तं तीतकालगहणं ? नित्तणाई वणाई अनिष्फण्णस्सं च मेतिणिं सुक्काणि य कुंड-सर-दि- दह - तलागाई पासित्ता तेणं साहिज्जति जहा कुवुट्ठी आसी । से तं तीतकालगहणं । [ ४५५ प्र.] भगवन्! अतीतकालग्रहण का क्या स्वरूप है ? [ ४५५ उ.] आयुष्मन् ! तृणरहित वन, अनिष्पन्न धान्ययुक्त भूमि और सूखे कुंड, सरोवर, नदी, द्रह और तालाबों को देखकर अनुमान किया जाता है कि यहां कुवृष्टि हुई है – वृष्टि हुई नहीं है, यह अतीतकालग्रहण है। ४५६. से किं तं पडुप्पण्णकालगहणं ? पडुप्पण्णकालगहणं साहुं गोयरग्गगयं भिक्खं अलभमाणं पासित्ता तेणं साहिज्जइ जहा—दुभिक्खं वट्ट । से तं पडुप्पण्णकालगहणं । [४५६ प्र.] भगवन्! प्रत्युत्पन्न - वर्तमानकालग्रहण का क्या स्वरूप है ? [४५६ उ.] आयुष्मन् ! गोचरी गए हुए साधु को भिक्षा नहीं मिलते देखकर अनुमान किया जाना कि यहां दुर्भिक्ष है। यह प्रत्युत्पन्नकालग्रहण अनुमान है।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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