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________________ ३५० अनुयोगद्वारसूत्र तालाबों को जल से संपूरित देखकर यह अनुमान करना कि यहां अच्छी वृष्टि हुई है। यह अतीतकालग्रहणसाधर्म्यवत्-अनुमान है। ४५२. से किं तं पडुप्पण्णकालगहणं ? पडुप्पण्णकालगहणं साहुं गोयरग्गगयं विच्छड्डियपउरभत्त-पाणं पासित्ता तेणं साहिज्जइ जहा—सुभिक्खे वट्टइ। से तं पडुप्पण्णकालगहणं । [४५२ प्र.] भगवन् ! प्रत्युत्पन्न (वर्तमान) कालग्रहण अनुमान का क्या स्वरूप है ? [४५२ उ.] आयुष्मन् ! गोचरी गये हुए साधु को गृहस्थों से विशेष प्रचुर आहार-पानी प्राप्त करते हुए देखकर अनुमान किया जाता है कि यहां सुभिक्ष है। यह प्रत्युत्पन्नकालग्रहण अनुमान है। ४५३. से किं तं अणागयकालगहणं ? अणागयकालगहणं अब्भस्स निम्मलत्तं कसिणा य गिरी सविजुया मेहा । थणियं वाउब्भामो संझा रत्ता य णिद्धा य ॥ ११८॥ वारुणं वा माहिंदं वा अण्णयरं वा पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिजइ जहा—सुंवुट्ठी भविस्सइ । से तं अणागतकालगहणं । [४५३ प्र.] भगवन् ! अनागतकालग्रहण का क्या स्वरूप है ? [४५३ उ.] आयुष्मन् ! आकाश की निर्मलता, पर्वतों का काला दिखाई देना, बिजली सहित मेघों की गर्जना, अनुकूल पवन और संध्या की गाढ लालिमा। ११८ वारुण—आर्द्रा आदि नक्षत्रों में एवं माहेन्द्र रोहिणी आदि नक्षत्रों में होने वाले अथवा किसी अन्य प्रशस्त उत्पात उल्कापात या दिग्दाहादि को देखकर अनुमान करना कि अच्छी वृष्टि होगी। इसे अनागतकालग्रहणविशेषदृष्टसाधर्म्यवत्-अनुमान कहते हैं। विवेचनयहां ग्रहणकाल की अपेक्षा अनुकूल विशेषदृष्ट-दृष्टसाधर्म्यवत्-अनुमान का विवेचन किया गया है। विशेषता का विचार किसी न किसी आधार निमित्त से किया जाता है। यहां काल के निमित्त से अनुकूल विशेषदृष्टि के तीन प्रकार बताये हैं। यद्यपि काल का कोई भेद नहीं है, वह अनन्तसमयात्मक है, किन्तु जब घड़ी, घंटा, मिनिट आदि व्यवहार से काल के खंड करते हैं तब स्थूल रूप से भूत, वर्तमान और भविष्य, ऐसा नामकरण करते हैं। जो ऊपर दिये गये कालविषयक उदाहरणों से स्पष्ट है। कालत्रयविषयक अनुमानों की व्याख्या इस प्रकार है १. अतीतकाल से सम्बन्धित ग्राह्य वस्तु का जिसके द्वारा ज्ञान किया जाता है, उसे अतीतकालग्रहण-अनुमान कहते हैं। उसका अनुमानप्रयोग इस प्रकार है—इह देशे सुवृष्टिः आसीत् समुत्पन्नतृणवनसस्यपूर्णमेदनीजलपूर्णकुण्डादिदर्शनात् तद्देशवत्।' इसमें ग्राह्य वस्तु सुवृष्टि है, जिसका अतीतकाल में होना अनुमान द्वारा ग्रहण
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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