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प्रमाणाधिकारनिरूपण
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४५०. से किं तं विसेसदिटुं ?
विसेसदिळं से जहाणमाए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं बहूणं पुरिसाणं मझे पुव्वदिलै पच्चभिजाणेज्जा-अयं से पुरिसे, बहूणं वा करिसावणाणं मज्झे पुव्वदिटुं करिसावणं पच्चभिजाणिज्जाअयं से करिसावणे । तस्स समासतो तिविहं गहणं भवति । तं जहा—तीतकालगहणं पडुप्पण्णकालगहणं अणागतकालगहणं ।
[४५० प्र.] भगवन् ! विशेषदृष्ट अनुमान का क्या स्वरूप है ?
[४५० उ.] आयुष्मन् ! विशेषदृष्ट अनुमान का स्वरूप यह है—जैसे कोई एक पुरुष अनेक पुरुषों के बीच में किसी पूर्वदृष्ट पुरुष को पहचान लेता है कि यह वह पुरुष है। इसी प्रकार अनेक कार्षापणों (सिक्कों) के बीच में से पूर्व में देखे हुए कार्षापण को पहिचान लेता है कि यह वही कार्षापण है।
उसका विषय संक्षेप से तीन प्रकार का है। वह इस प्रकार—अतीतकालग्रहण, प्रत्युत्पन्न (वर्तमान) कालग्रहण और अनागत (भविष्य) कालग्रहण। (अर्थात् अनुमान द्वारा भूत, वर्तमान और भविष्य इन तीनों कालों के पदार्थ का अनुमान किया जाता है।)
विवेचन— यहां दृष्टसाधर्म्यवत्-अनुमान का विचार किया गया है। पूर्व में दृष्ट—उपलब्ध पदार्थ की समानता के आधार पर होने वाले अनुमान को दृष्टसाधर्म्यवत् कहते हैं।
पूर्व में कोई पदार्थ सामान्य रूप से दृष्ट होता है और कोई विशेष रूप से। इसीलिए दृष्टपदार्थ के भेद से इस अनुमान के सामान्यदृष्ट और विशेषदृष्ट ये दो भेद हो जाते हैं। तात्पर्य यह है कि किसी एक वस्तु को देखकर तत्सदृश सभी वस्तुओं का ज्ञान करना या बहुत वस्तुओं को देखकर किसी एक का ज्ञान करना सामान्यदृष्ट है। विशेषदृष्ट में अनेक वस्तुओं में से किसी एक को पृथक् करके उसके वैशिष्टय का ज्ञान किया जाता है।
___ शास्त्रकार ने इन दोनों अनुमानों के जो उदाहरण दिये हैं, उनमें से सामान्यदृष्टसाधर्म्यवत् के दृष्टान्त का आशय यह है कि एक में दृष्ट सामान्य धर्म की समानता से अन्य अदृष्ट अनेकों में भी उस सामान्यधर्म का तथा अनेकों में दृष्ट सामान्य से तदनुरूप एक में सामान्य का निर्णय किया जाता है।
विशेषदृष्टसाधर्म्यवत्-अनुमान में भी यद्यपि सामान्य अंश तो अनुस्यूत रहता ही है, किन्तु इतनी विशेषता है कि पूर्व-दर्शन से प्राप्त संस्कारों से वर्तमान में उपलब्ध उसी पदार्थ को देखकर अनुमान कर लिया जाता है कि यह वही है जिसे मैंने पूर्व में देखा था।
अब अनुकूल विषय की अपेक्षा तीन प्रकारों का वर्णन करते हैं४५१. से किं तं तीतकालगहणं ?
तीतकालगहणं उत्तिणाणि वणाणि निप्फण्णसस्सं वा मेदिणिं पुण्णाणि य कुंड-सर-णदिदीहिया-तलागाइं पासित्ता तेणं साहिजइ जहा सुवुट्ठी आसि । से तं तीतकालगहणं ।
[४५१ प्र.] भगवन्! अतीतकालग्रहण अनुमान का क्या स्वरूप है ? [४५१ उ.] आयुष्मन् ! वनों में ऊगी हुई घास, धान्यों से परिपूर्ण पृथ्वी, कुंड, सरोवर, नदी और बड़े-बड़े