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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण परियरबंधेणं भाडं, जाणिज्जा महिलियं णिवसणेणं । सित्थेण दोणपागं, कई च एक्काए गाहाए ॥ ११६ ॥ ३४७ सेतं अवयवेणं । [४४६ प्र.] भगवन्! अवयव रूप-लिंग से निष्पन्न शेषवत् अनुमान किसे कहते हैं ? [४४६ उ.] आयुष्मन् ! सींग से महिष का, शिखा से कुक्कुट (मुर्गा) का, दांत से हाथी का, दाढ से वराह (सूअर) का, पिच्छ से मयूर का, खुर से घोड़े का, नखों से व्याघ्र का, बालों के गुच्छे से चमरी गाय का, द्विपद से मनुष्य का, चतुष्पद से गाय आदि का, बहुपदों से गोमिका आदि का, केसरसटा से सिंह का, ककुद (कांधले) से वृषभ का, चूड़ी सहित बाहु से महिला का अनुमान करना । तथा— बद्धपरिकरता (योद्धा की विशेष प्रकार की पोशाक) से योद्धा का, वेष से महिला का, एक दाने के पकने से द्रोण- पाक का और एक गाथा से कवि का ज्ञान होना । ११६ यह अवयवलिंगजन्य शेषवत् अनुमान है। ४४७. से किं तं आसएणं ? आसणं अग्गि धूमेणं, सलिलं बलगाहिं, वुद्धं अब्भविकारेणं, कुलपुत्तं सीलसमायारेणं । इङ्गिताकारितैर्ज्ञेयैः क्रियाभिर्भाषितेन च । नेत्र-वक्त्रविकारैश्च गृह्यतेऽन्तर्गतं मनः ॥ ११७॥ सेतं आसणं । से तं सेसवं । [४४७ प्र.] भगवन्! आश्रयजन्य शेषवत् अनुमान किसे कहते हैं ? [४४७ उ.] आयुष्मन् ! धूम से अग्नि का, बकपंक्ति से पानी का, अभ्रविकार (मेघविकार) से वृष्टि का और शील सदाचार से कुलपुत्र का तथा— शरीर की चेष्टाओं से, भाषण करने से और नेत्र तथा मुख के विकार से अन्तर्गत मन–आन्तरिक मनोभाव का ज्ञान होना । यह आश्रयजन्य शेषवत् अनुमान है। यही शेषवत् अनुमान है। विवेचन — ऊपर शेषवत् - अनुमान का स्वरूप बतलाया है। कार्य से कारण का, कारण से कार्य का, गुण से गुणी का, अवयव से अवयवी का और आश्रय से तदाश्रयवान् का अनुमान शेषवत् अनुमान कहलाता है। सूत्र में उदाहरणों द्वारा यह स्पष्ट किया गया है । कार्यानुमान में कार्य के होने पर उसके कारण का ज्ञान होता है। जैसे हिनहिनाहट रूप कार्य के द्वारा उसके कारण घोड़े की प्रतीति होती है। इसीलिए यह कार्यजन्य शेषवत् - अनुमान है। कारणानुमान में कारण के द्वारा कार्य की अनुमति होती है। जैसे आकाश में विशिष्ट मेघघटाओं को देखने पर वृष्टि का अनुमान किया जाता है, क्योंकि विशिष्ट प्रकार के मेघों से वृष्टि अवश्य होती ही है। विशिष्ट मेघ कारण हैं और वृष्टि कार्य है। कारण-कार्यभाव सम्बन्धी मतभिन्नता का निवारण करने के लिए सूत्रकार ने अन्य उदाहरण दिया है—
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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