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अनुयोगद्वारसूत्र
सेसवं पंचविहं पण्णत्तं । तं जहा—कजेणं कारणेणं गुणेणं अवयवेणं आसएणं । [४४२ प्र.] भगवन् ! शेषवत्-अनुमान किसे कहते हैं ?
[४४२ उ.] आयुष्मन् ! शेषवत्-अनुमान पांच प्रकार का कहा गया है। यथा—१. कार्येण (कार्य से), २. कारणेन (कारण द्वारा), ३. गुणेण (गुण से), ४. अवयवेन (अवयव से) और ५. आश्रयेण (आश्रय से) । (इन पांचों के द्वारा जो अनुमान किया जाता है, उसे शेषवत्-अनुमान कहते हैं।)
४४३. से किं तं कज्जेणं ?
कजेणं संखं सद्देणं भेरि तालिएणं, वसभं ढंकिएणं, मोरं केकाइएणं, हयं हेसिएणं, गयं गुलगुलाइएणं, रहं घणघणाइएणं । से तं कजेणं ।
[४४३ प्र.] भगवन् ! कार्य से उत्पन्न होने वाले शेषवत्-अनुमान का क्या स्वरूप है ?
[४४३ उ.] आयुष्मन् ! शंख के शब्द को सुनकर शंख का अनुमान करना, भेरी के शब्द (ध्वनि) से भेरी का, बैल के रंभाने-दलांकने से बैल का, केकारव सुनकर मोर का, हिनहिनाना सुनकर घोड़े का, गुलगुलाहट सुनकर हाथी का और घनघनाहट सुनकर रथ का अनुमान करना।
यह कार्यलिंग से उत्पन्न शेषवत्-अनुमान है। ४४४. से किं तं कारणेणं ?
कारणेणं तंतवो पडस्स कारणं ण पडो तंतुकारणं, वीरणा कडस्स कारणं ण कडो वीरणाकारणं, मिप्पिंडो घडस्स कारणं ण घडो मिप्पिंडकारणं । से तं कारणेणं ।
[४४४ प्र.] भगवन् ! कारणरूप लिंग से उत्पन्न शेषवत्-अनुमान क्या है ?
[४४४ उ.] आयुष्मन् ! कारणरूप लिंग से उत्पन्न हुआ शेषवत्-अनुमान इस प्रकार है-तंतु पट के कारण हैं, किन्तु पट तंतु का कारण नहीं है, वीरणा-तृण कट (चटाई) के कारण हैं, लेकिन कट वीरणा का कारण नहीं है, मिट्टी का पिंड घड़े का कारण है किन्तु घड़ा मिट्टी का कारण नहीं है।
यह कारणलिंगजन्य शेषवत्-अनुमान है। ४४५. से किं तं गुणेणं ?
गुणेणं सुवण्णं निकसेणं, पुष्कं गंधेणं, लवणं रसेणं, मदिरं आसायिएणं, वत्थं फासेणं । से तं गुणेणं ।
[४४५ प्र.] भगवन् ! गुणलिंगजन्य शेषवत्-अनुमान किसे कहते हैं ? __ [४४५ उ.] आयुष्मन् ! निकष—कसौटी से स्वर्ण का, गंध से पुष्प का, रस से नमक का, आस्वाद (चखने) से मदिरा का, स्पर्श से वस्त्र का अनुमान करना गुणनिष्पन्न शेषवत्-अनुमान है।
४४६. से किं तं अवयवेणं ?
अवयवेणं महिसं सिंगेणं, कुक्कुडं सिहाए, हस्थि विसाणेणं, वराहं दाढाए, मोरं पिच्छेणं, आसं खुरेणं, वग्धं नहेणं, चमरं वालगंडेणं, दुपयं मणूसमाइ, वउपयं गवमादि, बहुपयं गोम्हियादि, सीहं केसरेणं, वसहं ककुहेणं, महिलं वलयबाहाए ।