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________________ ३३८ अनुयोगद्वारसूत्र छप्पन अंगुल वर्ग प्रमाण श्रेणी खंड का अपहार होता है, तब सब मिलकर ज्योतिष्क देवों की संख्या की पूर्णता हो और दूसरी ओर संपूर्ण प्रतर खाली होगा। मुक्तवैक्रियशरीर सामान्य मुक्तऔदारिकशरीरों के तुल्य अर्थात् अनन्त हैं। नारकों के जैसे बद्धआहारकशरीर नहीं होते, इसी प्रकार ज्योतिष्क देवों के भी नहीं हैं। मुक्तआहारकशरीर नारकों के शरीरों के समान अनन्त हैं। ज्योतिष्कों के बद्ध तैजस-कार्मण शरीर असंख्यात हैं, क्योंकि ये देव असंख्यात हैं। मुक्त तैजस-कार्मण र अनन्त हैं। अनन्त होने का कारण नारकों के मुक्त तैजस-कार्मण शरीरों का प्रमाण बताने के प्रसंग में स्पष्ट किया जा चुका है। वैमानिक देवों के बद्ध-मुक्त शरीर एवं कालप्रमाण का उपसंहार ४२६. (१) वेमाणियाणं भंते ! केवतिया ओरालियसरीरा पन्नत्ता ? गोयमा ! जहा नेरइयाणं तहा भाणियव्वा । [४२६-१ प्र.] भगवन् ! वैमानिक देवों के कितने औदारिकशरीर कहे गये हैं ? [४२६-१ उ.] गौतम! जिस प्रकार नैरयिकों के औदारिकशरीरों की प्ररूपणा की गई है, उसी प्रकार वैमानिक देवों की भी जानना चाहिए। (२) वेमाणियाणं भंते ! केवइया वेउब्वियसरीरा पण्णत्ता ? गो० ! दुविहा प० । तं०—बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य । तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते णं असंखेजा, असंखेजाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखेजइभागो, तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलबितियवग्गमूलं ततियवग्गमूलपडुप्पण्णं, अहव णं अंगुलततियवग्गमूलघणप्पमाणमेत्ताओ सेढीओ । मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिया । [४२६-२ प्र.] भगवन् ! वैमानिक देवों के कितने वैक्रिय शरीर कहे गये हैं ? [४२६-२ उ.] गौतम! वे दो प्रकार के हैं—बद्ध और मुक्त। उनमें से बद्धवैक्रियशरीर असंख्यात हैं। उनका काल की अपेक्षा असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालों में अपहरण होता है और क्षेत्रतः प्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हुई असंख्यात श्रेणियों जितने हैं। उन श्रेणियों की विष्कंभसूची अंगुल के तृतीय वर्गमूल से गुणित द्वितीय वर्गमूल प्रमाण है अथवा अंगुल के तृतीय वर्गमूल के घनप्रमाण श्रेणियां हैं। मुक्तवैक्रियशरीर औधिक औदारिकशरीर के तुल्य जानना चाहिए। (३) आहारयसरीरा जहा नेरइयाणं । [४२६-३] वैमानिक देवों के बद्ध-मुक्त आहारकशरीरों का प्रमाण नारकों के बद्ध-मुक्त आहारकशरीरों के बराबर जानना चाहिए। (४) तेयग-कम्मगसरीरा जहा एएसिं चेव वेउव्वियसरीरा तहा भाणियव्वा । से तं सुहुमे खेत्तपलिओवमे । से तं खेत्तपलिओवमे । से तं पलिओवमे । से तं विभाग
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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