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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण छेदनकदायीराशि कहते हैं। उसको इस प्रकार समझना चाहिए—प्रथम वर्ग (४ संख्या) को छेदने पर दो छेदनक होते हैं, पहला छेदनक दो और दूसरा छेदनक एक। दोनों को मिलाकर दो छेदनक हुए। इसी प्रकार दूसरे वर्ग १६ के चार छेदनक हुए, वह इस प्रकार प्रथम ८, द्वितीय ४, तृतीय २ और चतुर्थ १ । तृतीय वर्ग २५६ के आठ छेदनक, चतुर्थ वर्ग के १६ छेदनक, पांचवें वर्ग के ३२ और छठे वर्ग ६४ छेदनक हुए। इस प्रकार पांचवें और छठे वर्ग के छेदनकों का योग करने पर कुल ९६ छेदनक होते हैं। यह छियानवें छेदनकदायी राशि है। अथवा एक के अंक को स्थापित करके उत्तरोत्तर उसे छियानवै बार दुगुना-दुगुना करने पर जितनी राशि हो वह राशि छियानवै छेदनकदायीराशि कहलाती है। इस छियानवै छेदनकदायी राशि का परिमाण उतना ही होगा, जिसे छठे वर्ग से गुणित पंचम वर्ग की राशि के प्रसंग में बताया गया है। यह जघन्यपद में मनुष्यों की संख्या का प्रमाण है। ___जघन्यपद में मनुष्यों की संख्या उक्त प्रमाण वाली संख्यात है। अतएव उतने ही मनुष्यों के जघन्य पदवी बद्धऔदारिकशरीर जानना चाहिए। ___ उत्कृष्ट पद में मनुष्यों की संख्या और उनके बद्ध औदारिकशरीरों का प्रमाण इस प्रकार है—उत्कृष्ट पद में मनुष्यों की संख्या असंख्यात है। जो सम्मूछिम मनुष्यों की संख्या की अपेक्षा पाई जाती है। जब सम्मूछिम मनुष्य पैदा होते हैं तब वे एक साथ अधिक से अधिक असंख्यात होते हैं। असंख्यात संख्या के असंख्यात भेद हैं। इन भेदों में से जो असंख्यात संख्या मनुष्यों के लिए मानी है, उसका परिचय यहां काल और क्षेत्र दोनों प्रकारों से दिया गया मनुष्य के मुक्त औदारिकशरीरों का प्रमाण सामान्य मुक्त औदारिकशरीरों के समान अनन्त है। मनुष्यों के बद्ध वैक्रियशरीर संख्यात हैं, क्योंकि वैक्रियलब्धि गर्भज मनुष्यों में ही होती है और वह किसी किसी में, सब में नहीं। कालतः इस संख्यात का प्रमाण इस प्रकार है—एक-एक समय में एक-एक वैक्रियशरीर का अपहार किया जाए तो संख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल व्यतीत हो जाए। मुक्तवैक्रियशरीरों का प्रमाण सामान्य मुक्तऔदारिकशरीरों जितना अनन्त समझना चाहिए। मनुष्यों के बद्ध आहारकशरीर होते भी हैं और नहीं भी होते हैं। हों तो जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट सहस्रपृथक्त्व तक हो सकते हैं। मुक्त आहारकशरीर सामान्य मुक्त आहारकशरीरों जितने हैं।' मनुष्यों के बद्ध-मुक्त तैजस और कार्मण शरीरों का प्रमाण इनके बद्ध-मुक्त औदारिकशरीरों के प्रमाण जिंतना है। अर्थात् बद्ध असंख्यात और मुक्त अनन्त हैं। वाणव्यंतर देवों के बद्ध-मुक्त शरीर ४२४. (१) वाणमंतराणं ओरालियसरीरा जहा नेरइयाणं । [४२४-१] वाणव्यंतर देवों के औदारिकशरीरों का प्रमाण नारकों के औदारिकशरीरों जैसा जानना चाहिए। बद्ध-मुक्त आहारकशरीरों का प्रमाण सामान्य बद्ध-मुक्त आहारकशरीरों के प्रसंग में कारण सहित स्पष्ट किया जा चुका है। यद्यपि एक मनुष्य के एक साथ चार शरीर तक हो सकते हैं, पांच नहीं। परन्तु यहां पांच बद्ध शरीरों की प्ररूपणा की गई है, उसका तात्पर्य यह है कि नाना मनुष्यों की अपेक्षा एक साथ पांच शरीर भी होते हैं।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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