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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण ३३३ मुक्तआहारकशरीर औधिक मुक्तऔदारिकशरीरों के बराबर जानना चाहिए। (४) तेयग-कम्मगसरीरा जहा एतेसिं चेव ओहिया ओरालिया तहा भाणियव्वा । [४२३-४] मनुष्यों के बद्ध-मुक्त तैजस-कार्मण शरीर का प्रमाण इन्हीं के बद्ध-मुक्त औदारिक शरीरों के समान जानना चाहिए। विवेचन- ऊपर मनुष्यों के बद्ध-मुक्त औदारिक आदि पंच शरीरों का परिमाण बतलाया है। मनुष्य मुख्य रूप से औदारिकशरीरधारी हैं। अतः उनके विषय में विशेष रूप से वक्तव्यता इस प्रकार है मनुष्यों के बद्धऔदारिकशरीर कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात होते हैं। इसका कारण यह है कि मनुष्य दो प्रकार के हैं—गर्भज और सम्मूछिम। इनमें से गर्भज मनुष्य तो सदैव होते हैं किन्तु सम्मूच्छिम मनुष्य कभी होते हैं और कभी नहीं होते हैं। उनकी उत्कृष्ट आयु भी अंतर्मुहूर्त की होती है और उत्पत्ति का विरहकाल उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त प्रमाण कहा गया है। अतएव जब सम्मूच्छिम मनुष्य नहीं होते और केवल गर्भज मनुष्य ही होते हैं, तब वे संख्यात होते हैं। इसी अपेक्षा उस समय बद्ध औदारिकशरीर संख्यात कहे हैं। जब सम्मूछिम मनुष्य होते हैं तब समुच्चय मनुष्य असंख्यात हो जाते हैं। क्योंकि सम्मूछिम मनुष्यों का प्रमाण अधिक से अधिक श्रेणी के असंख्यातवें भाग में स्थित आकाशप्रदेशों की राशि के तुल्य कहा गया है। ये सम्मूच्छिम मनुष्य प्रत्येकशरीरी होते हैं, इसलिए गर्भज और सम्मूछिम—दोनों के बद्धऔदारिकशरीर मिलकर असंख्यात होते हैं। यद्यपि जघन्यपद में संख्यात होने से गर्भज मनुष्यों के औदारिकशरीरों का परिमाण निर्दिष्ट हो गया किन्तु संख्यात के भी संख्यात भेद होते हैं। इसलिए संख्यात कहने से नियत संख्या का बोध नहीं होता है। अतएव नियत संख्या बताने के लिए संख्यात कोटाकोटि कहा गया हैऔर इसकी विशेष स्पष्टता के लिए तीन यमल पद से ऊपर और चार यमल पद से नीचे कहा है। इसका आशय इस प्रकार है—ये संख्यात कोटाकोटि २९ अंकप्रमाण होती हैं। शास्त्रीय परिभाषा के अनुसार आठ-आठ पदों की एक यमलपद संख्या है। अतः चौबीस अंकों के तो तीन यमलपद हो गये और उसके बाद पांच अंक शेष रहते हैं, जिनसे चौथे यमल पद की पूर्ति नहीं होती। इसी कारण यहां तीन यमलपदों से ऊपर और चार यमलपदों से नीचे यह पाठ दिया है। अब इसी बात को विशेष स्पष्ट करने के लिए सूत्र में दूसरी विधि बताई है। पंचम वर्ग से छठे वर्ग को गुणित करने पर जो राशि निष्पन्न हो, जघन्य पद में उस राशिप्रमाण मनुष्यों की संख्या है। तात्पर्य इस प्रकार है कि एक का वर्ग नहीं होता। एक को एक से गुणा करने पर गुणनफल एक ही आता है, संख्या में वृद्धि नहीं होती अतः एक की वर्ग रूप में गणना नहीं होती। वर्ग का प्रारम्भ दो की संख्या से होता है। अतः दो का दो से गुणा करने पर ४ संख्या हुई। यह प्रथम वर्ग हुआ। चार का चार से गुणा करने पर १६ संख्या हुई, यह दूसरा वर्ग हुआ। फिर १६ को १६ से गुणा करने पर २५६ संख्या हुई, यह तृतीय वर्ग हुआ। २५६ को २५६ से गुणा करने पर ६५५३६ संख्या हुई, यह चौथा वर्ग हुआ। इस चौथे वर्ग की राशि ६५५३६ को पुनः इसी राशि ६५५३६ से गुणित करने पर ४२९४९६७२९६ चार अरब उनीस करोड़ उनचास लाख सड़सठ हजार दो सौ छियानवै राशि पंचम वर्ग की हुई। इस पंचम वर्ग की राशि चत्तारि य कोडिसया अउणतीसं च होंति कोडीओ। अउण्णावन्नं लक्खा सत्तट्ठी चेव य सहस्सा । १।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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