SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 379
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૮ अनुयोगद्वारसूत्र विवेचन- वायुकायिक जीवों के बद्ध और मुक्त औदारिकशरीरों के परिमाण में तो कोई विशेषता नहीं है। वे क्रमशः पृथ्वीकायिक जीवों के समान असंख्यात और अनन्त हैं। लेकिन इनमें वैक्रियशरीर भी संभव होने से तत्सम्बन्धित स्पष्टीकरण इस प्रकार है . वायुकायिक जीवों के बद्ध वैक्रियशरीर असंख्यात हैं और उस असंख्यात का परिमाण बताने के लिए.कहा है कि यदि ये शरीर एक-एक समय में निकाले जाएं तो क्षेत्रपल्योपम के असंख्यातवें भाग में जितने आकाशप्रदेश होते हैं, उतने समयों में अनको निकाला जा सकता है। तात्पर्य यह है कि क्षेत्रपल्योपम के असंख्यातवें भाग के आकाश में जितने प्रदेश हैं, उतने ये बद्ध वैक्रियशरीर होते हैं। परन्तु यह प्ररूपणा समझने के लिए है। वस्तुतः आज तक किसी ने इस प्रकार अपहरण करके निकाला नहीं है। कदाचित् यह कहा जाए कि असंख्यात लोकाकाशों के जितने प्रदेश हैं, उतने वायुकायिक जीव हैं, ऐसा शास्त्रों में उल्लेख है, तो फिर उनमें से वैक्रियशरीराधारी वायुकायिक जीवों की इतनी अल्प संख्या बताने का क्या कारण है ? इसका समाधान यह है कि वायुकायिक जीव चार प्रकार के हैं—१. सूक्ष्म अपर्याप्त वायुकायिक, २. सूक्ष्म पर्याप्त वायुकायिक, ३. बादर अपर्याप्त वायुकायिक और ४. बादर पर्याप्त वायुकायिक। इनमें से आदि के तीन प्रकार के वायुकायिक जीव तो असंख्यात लोकाकाशों के प्रदेशों जितने हैं और उनमें वैक्रियलब्धि नहीं होती है। बादर पर्याप्त वायुकायिक जीव प्रतर के असंख्यातवें भाग में जितने आकाशप्रदेश होते हैं, उतने हैं, किन्तु वे सभी वैक्रियलब्धिसम्पन्न नहीं होते हैं। इनमें भी असंख्यातवें भागवर्ती जीवों के ही वैक्रियलब्धि होती है। वैक्रियलब्धिसम्पन्नों में भी सब बद्ध वैक्रियशरीरयुक्त नहीं होते, किन्तु असंख्येय भागवर्ती जीव ही बद्धवैक्रिय शरीरधारी होते हैं। इसलिए वायुकायिक जीवों में जो बद्धवैक्रियशरीरधारी जीवों की संख्या कही गई है, वही सम्भव है। इससे अधिक बद्धवैक्रियशरीरधारी वायुकायिक जीव नहीं होते हैं। वायुकायिक जीवों के बद्ध-मुक्त आहारकशरीर के विषय में पृथ्वीकायिक जीवों के मुक्त वैक्रियशरीर के समान जानना चाहिए। अर्थात् वायुकायिक जीवों के आहारकलब्धि का अभाव होने से बद्धआहारकशरीर तो होते ही नहीं किन्तु अनन्त मुक्त आहारकशरीर हो सकते हैं। बद्ध-मुक्त तैजस-कार्मणशरीरों की संख्या पृथ्वीकायिकों के इन्हीं दो शरीरों के बराबर क्रमशः असंख्यात और अनन्त जानना चाहिए। वनस्पतिकायिकों के बद्ध-मुक्त शरीर (४) वणस्सइकाइयाणं ओरालिय-वेउब्विय-आहारगसरीरा जहा पुढविकाइयाणं तहा भाणियव्वा । वणस्सइकाइयाणं भंते ! केवइया तेयग-कम्मगसरीरा पण्णत्ता ? गो० ! जहा ओहिया तेयग-कम्मगसरीरा तहा वणस्सइकाइयाण वि तेयग-कम्मगसरीरा भाणियव्वा । - [४२०-४] वनस्पतिकायिक जीवों के औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीरों को पृथ्वीकायिक जीवों के औदारिकादि शरीरों के समान समझना चाहिए। [प्र.] भगवन! वनस्पतिकायिक जीवों के तैजस-कार्मण शरीर कितने कहे गये हैं?
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy