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प्रमाणाधिकारनिरूपण
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से अपहृत होते हैं। क्षेत्रत: वे अनन्त लोकप्रमाण हैं तथा द्रव्यतः वे अभव्यों से अनन्तगुणे और सिद्धों के अनन्तवें
भाग हैं।
अप्कायिक और तेजस्कायिक जीवों के बद्ध और मुक्त औदारिकशरीरों का परिमाण भी इतना ही जानना
चाहिए।
पृथ्वीकायिक आदि जीवों के बद्ध और मुक्त औदारिकशरीरों का क्रमशः जो असंख्यात और अनन्त परिमाण बताया है, उसका विशदता के साथ स्पष्टीकरण पूर्व में सामान्य से बद्ध और मुक्त औदारिकशरीरों की प्ररूपणा के प्रसंग में किया जा चुका है, तदनुरूप वह समस्त वर्णन यहां भी समझ लेना चाहिए।
बद्ध वैक्रिय और आहारक शरीर इनको भवस्वभाव से ही नहीं होते हैं । किन्तु मुक्त शरीर होते हैं । वैक्रियशरीर सामान्य मुक्त औदारिकशरीरों के समान अनन्त और मुक्त आहारकशरीर भूतकालिक मनुष्यभवों की अपेक्षा अनन्त होते हैं ।
पृथ्वीकायिकों आदि के बद्ध और मुक्त तैजस- कार्मण शरीरों के लिए जो औदारिक शरीरों के परिमाण का संकेत किया है, उसका तात्पर्य यह है कि बद्ध तैजस- कार्मण बद्ध औदारिकवत् असंख्यात और मुक्त तैजस-कार्मण मुक्त औदारिकवत् अनन्त हैं ।
वायुकायिकों के बद्ध-मुक्त शरीर
(३) वाउकाइयाणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा पन्नत्ता ? गो० ! जहा पुढविकाइयाणं ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा । वाउकाइयाणं भंते ! केवतिया वेउव्वियसरीरा पन्नत्ता ?
गो० ! दुविहा प० । तं बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य । तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जा समए २ अवहीरमाणा २ पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमेत्तेणं कालेणं अवहीरंति । नो चेवणं अवहिया सिया । मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालियमुक्केल्लया । आहरयसरीरा जहा पुढविकाइयाणं वेडव्वियसरीरा तहा भाणियव्वा ।
तेयग- कम्मगसरीरा जहा पुढविकाइयाणं तहा भाणियव्वा ।
[४२०- ३ प्र.] भगवन्! वायुकायिक जीवों के औदारिकशरीर कितने कहे गये हैं ?
[४२० - ३ उ.] गौतम ! जिस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों के औदारिक शरीरों की वक्तव्यता है, वैसी ही यहां जानना चाहिए ।
[प्र.] भगवन्! वायुकायिक जीवों के वैक्रियशरीर कितने हैं ?
[उ.] गौतम! वे दो प्रकार के कहे गये हैं—बद्ध और मुक्त। उनमें से बद्ध असंख्यात हैं। यदि समय-समय में एक-एक शरीर का अपहरण किया जाये तो (क्षेत्र) पल्योपम के असंख्यातवें भाग में जितने प्रदेश हैं, उतने काल में पूर्णत: अपहृत हों । किन्तु उनका किसी ने कभी अपहरण किया नहीं है और मुक्त औधिक औदारिक के बराबर हैं और आहारकशरीर पृथ्वीकायिकों के वैक्रियशरीर के समान कहना चाहिए।
बद्ध, मुक्त, तैजस, कार्मण शरीरों की प्ररूपणा पृथ्वीकायिक जीवों के बद्ध एवं मुक्त तैजस और कार्मण शरीरों जैसी समझना चाहिए।