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________________ ३२६. अनुयोगद्वारसूत्र बद्ध औदारिकशरीर असुरकुमार देवों के नहीं होते उसी प्रकार बद्ध आहारकशरीर भी नहीं होते हैं। मुक्त औदारिकशरीर जिस प्रकार असुरकुमारों के अनन्त होते हैं, उसी प्रकार मुक्त आहारकशरीर भी अनन्त जानने चाहिए । तैजस-कार्मण शरीर बद्ध असंख्यात और मुक्त अनन्त जानने चाहिए। स्पष्टीकरण पूर्व में किया जा चुका है। असुरकुमारों के बद्ध और मुक्त शरीरों का जो परिमाण बताया है, वही तज्जातीय होने से शेष भवनवासियों के शरीरों का भी समझ लेना चाहिए। पृथ्वी - अप्-तेजस्कायिक जीवों के बद्ध-मुक्त शरीर ४२०. (१) पुढविकाइयाणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा पन्नत्ता ? गोमा ! दुविहा प० । तं बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य । एवं जहा ओहिया ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा । पुढविकाइयाणं भंते ! केवइया वेउव्वियसरीरा पन्नत्ता ? गोयमा ! दुविहा प० । तं बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य । तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते णं णत्थि । मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा । आहारगसरीरा वि एवं चेव भाणियव्वा । तेयग - कम्मगसरीराराणं जहा एएसिं चेव ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा । [४२०-१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने औदारिकशरीर कहे गये हैं ? . [४२० - १ उ.] गौतम! इनके औदारिकशरीर दो प्रकार के कहे गये हैं—बद्ध और मुक्त। इनके दोनों शरीरों की संख्या सामान्य बद्ध और मुक्त औदारिकशरीरों जितनी जानना चाहिए। [प्र.] भगवन्! पृथ्वीकायिकों के वैक्रियशरीर कितने कहे गये हैं ? [उ.] गौतम! वे दो प्रकार के कहे गये हैं—बद्ध और मुक्त। इनमें से बद्ध तो इनके नहीं होते हैं और मुक्त के लिए औदारिकशरीरों के समान जानना चाहिए। आहारकशरीरों की वक्तव्यता भी इसी प्रकार जानना चाहिए। इनके बद्ध और मुक्त तैजस- कार्मण शरीरों की प्ररूपणा भी इनके बद्ध और मुक्त औदारिकशरीरों के समान समझना चाहिए। (२) जहा पुढविकाइयाणं एवं आउकाइयाणं तेउकाइयाणं य सव्वसरीरा भाणियव्वा । [ ४२० - २] जिस प्रकार की वक्तव्यता पृथ्वीकायिकों के पांच शरीरों की है, वैसी ही वक्तव्यता अर्थात् उतनी ही संख्या अप्कायिक और तेजस्कायिक जीवों के पांच-शरीरों को जाननी चाहिए। विवेचन — ऊपर पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तैजस्कायिक जीवों के बद्ध और मुक्त शरीरों का परिमाण बतलाया है। पृथ्वी कायिकों के बद्ध-मुक्त शरीरों का परिमाण बताने के लिए औधिक औदारिकशरीरों का संकेत दिया गया है । प्रज्ञापनासूत्र के शरीरपद के अनुसार उनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है— बद्ध शरीर असंख्यात हैं। काल की अपेक्षा वे असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं। क्षेत्रत: वे असंख्यलोक प्रमाण हैं। मुक्त औदारिकशरीर अनन्त हैं । कालतः अनन्त उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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