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अनुयोगद्वारसूत्र वर्गमूल ४ हुआ। अतः इस द्वितीय वर्ग की राशि का घन करने से ४४४४४ =६४ हुआ। सो ये ६४ प्रमाण रूप श्रेणियां यहां जानना चाहिए। इस प्रकार के कथन में वर्णनशैली की विचित्रता है, अर्थ में कोई अन्तर नहीं है। यह असत्कल्पना से कल्पित हुई ६४ संख्या रूप श्रेणियों की जो प्रदेशराशि है, जिन्हें सैद्धान्तिक दृष्टि से असंख्यात माना है, उस राशिगत प्रदेशों की संख्या के बराबर नारकों के बद्ध वैक्रियशरीर होते हैं।
नारकों के बद्ध वैक्रियशरीरों को असंख्यात मानने का कारण यह भी है कि प्रत्येकशरीरी होने से नारकों की संख्या इतनी ही असंख्यात है। अतएव उनके बद्ध वैक्रियशरीर इतने ही हो सकते हैं, अल्पाधिक नहीं। इसी प्रकार अन्यत्र भी जो जीव प्रत्येकशरीरी हों स्वतन्त्र एक-एक शरीर के स्वामी हों उनके बद्ध शरीरों की संख्या भी तत्प्रमाण समझ लेना चाहिए। ___ नारकों के मुक्त वैक्रियशरीरों की प्ररूपणा औधिक मुक्त औदारिकशरीर के समान जानने के कथन का आशय यह है कि मुक्त औदारिकशरीरों की संख्या सामान्यतः अनन्त कही गई है, उतनी ही संख्या वाले नारक जीवों के मुक्त वैक्रियशरीर हैं।
नारकों के बद्ध औदारिकशरीर की तरह बद्ध आहारकशरीर के विषय से भी जानना चाहिए। क्योंकि नारकों के बद्ध आहारकशरीर नहीं होते हैं तथा जैसे पूर्व में मुक्त औदारिकशरीरों की संख्या सामान्यतः अनन्त कही है, उतनी ही संख्या मुक्त आहारकशरीरों की है। ___बद्ध और मुक्त तैजस-कार्मण शरीरों की संख्या बद्ध-मुक्त वैक्रियशरीरों के बराबर बताने का कारण यह है कि ये दोनों शरीर सभी नारकों के होते हैं, अतएव इनकी संख्या तत्प्रमाण समझना चाहिए। भवनवासियों के बद्ध-मुक्त शरीर
४१९. (१) असुरकुमाराणं भंते ! केवतिया ओरालियसरीरा पन्नत्ता ? गोयमा ! जहा नेरइयाणं ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा । [४१९-१ प्र.] भगवन् ! असुरकुमारों के कितने औदारिकशरीर कहे गये हैं ?
[४१९-१. उ.] गौतम! जैसी नारकों के बद्ध-मुक्त औदारिकशरीरों की प्ररूपणा की, उसी प्रकार इनके विषय में भी जानना चाहिए।
विवेचन- वैक्रियशरीर वाले होने से जैसे नारकों के बद्ध औदारिकशरीर नहीं हैं, उसी प्रकार असुरकुमारों के भी बद्ध औदारिकशरीर नहीं होते। उनके वैक्रियशरीर होता है। परन्तु मुक्त औदारिकशरीर जैसे नारकों के अनन्त कहे हैं इसी प्रकार इनके भी जानना चाहिए।
(२) असुरकुमाराणं भंते ! केवतिया वेउव्वियसरीरा पन्नत्ता ? ___ गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता । तं०—बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य । तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जा असंखेजाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालतो, खेत्ततो असंखेजाओ सेढीओ पयरस्स असंखेजइभागो, तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलपढमवग्गमूलस्स असंखेजतिभागो । मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा ।
[४१९-२ प्र.] भगवन् ! असुरकुमारों के कितने वैक्रियशरीर कहे गये हैं ?