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________________ ३२० अनुयोगद्वारसूत्र - गोयमा ! दुविहा प० । तं०-बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य । तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते णं अणंता, अणंताहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा, दव्वओ सिद्धेहिं अणंतगुणा सव्वजीवाणं अणंतभागूणा । तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते णं अणंता, अणंताहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्ततो अणंता लोगा, दव्वओ सव्वजीवेहिं अणंतगुणा जीववग्गस्स अणंतभागो । [४१६ प्र.] भगवन् ! तैजसशरीर कितने कहे गये हैं ? [४१६ उ.] गौतम! वे दो प्रकार के कहे हैं—बद्ध और मुक्त। उनमें से बद्ध अनन्त हैं, जो कालतः अनन्त उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं। क्षेत्रतः वे अनन्त लोकप्रमाण हैं। द्रव्यतः सिद्धों से अनन्तगुणे और सर्व जीवों से अनन्तभाग न्यून हैं। मुक्त तैजसशरीर अनन्त हैं, जो कालतः अनन्त उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों में अपहृत होते हैं। क्षेत्रतः अनन्त लोकप्रमाण हैं, द्रव्यतः समस्त जीवों से अनन्तगुणे तथा जीववर्ग के अनन्तवें भाग हैं। विवेचन— यहां तैजसशरीरों का परिमाण बताया है। यह भी बद्ध और मुक्त के भेद से दो प्रकार के हैं। बद्ध तैजसशरीर अनन्त इसलिए हैं कि साधारणशरीरी निगोदिया जीवों के भी तैजसशरीर पृथक्-पृथक् होते हैं, औदारिकशरीर की तरह एक नहीं। उसकी अनन्तता का कालतः परिमाण —अनन्त उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों के समयों के बराबर है। क्षेत्रतः अनन्त लोकप्रमाण है अर्थात् अनन्त लोकाकाशों में जितने प्रदेश हों, इतने प्रदेशप्रमाण वाले हैं। द्रव्य की अपेक्षा बद्ध तैजसशरीर सिद्धों से अनन्तगुणे और सर्वजीवों की अपेक्षा से अनन्तभाग न्यून होते हैं। इसका कारण यह है तैजसशरीर समस्त संसारी जीवों के होते हैं और संसारी जीव सिद्धों से अनन्तगुणे हैं, इसलिए तैजसशरीर भी सिद्धों से अनन्तगुणे हुए। किन्तु सर्वजीवराशि की अपेक्षा विचार करने पर समस्त जीवों से अनन्तवें भाग कम इसलिए है कि सिद्धों के तैजसशरीर नहीं होता और सिद्ध सर्वजीवराशि के अनन्तवें भाग हैं। अतः उन्हें कम कर देने से तैजसशरीर सर्वजीवों के अनन्तवें भाग न्यून हो जाते हैं। इस प्रकार बद्ध तैजसशरीर चाहे सिद्धों से अनन्तगुणे हैं, ऐसा कहो, चाहे सर्वजीवराशि के अनन्तवें भाग न्यून हैं, ऐसा कहो, अर्थ समान है। सारांश यह कि बद्ध तैजसशरीर सर्व संसारी जीवों की संख्या के बराबर हैं, समस्त जीवराशि की संख्या के बराबर नहीं हैं। मुक्त तैजसशरीर भी सामान्यतः अनन्त हैं। काल की अपेक्षा अनन्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी कालों के समयों के बराबर हैं। क्षेत्र की अपेक्षा अनन्त लोकप्रमाण हैं। अर्थात् अनन्त लोकों की प्रदेशराशि के बराबर अनन्त हैं। द्रव्यतः मुक्त तैजसशरीर सर्वजीवों से अनन्तगुणे हैं तथा सर्व जीववर्ग के अनन्तवें भागप्रमाण हैं। ___मुक्त तैजसशरीरों का परिमाण समस्त जीवों से अनन्तगुणा मानने का कारण यह है कि प्रत्येक जीव भूतकाल में अनन्त-अनन्त तैजसशरीरों का त्याग कर चुके हैं। जीवों के द्वारा जब उनका परित्याग कर दिया जाता है, उन शरीरों संख्यात काल पर्यन्त उस पर्याय में अवस्थान रह सकता है। अत: उन सबकी संख्या समस्त जीवों से अनन्तगुणी कही गई है तथा जो जीववर्ग के अनन्तवें भागप्रमाण कही गई है, उसको इस रीति से समझना चाहिए मुक्त तैजसशरीर जीववर्ग के अनन्तवें भागप्रमाण हैं। इसका कारण यह है कि समस्त मुक्त तैजसशरीर जीववर्ग प्रमाण तो तब हो पाते जब कि एक-एक जीव के तैजसशरीर सर्वजीवराशिप्रमाण होते या उससे कुछ अधिक होते और उनके साथ सिद्ध जीवों के अनन्त भाग की पूर्ति होती। परन्तु सिद्ध जीवों के तो तैजसशरीर होता
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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