SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण ३१५ सूक्ष्मता है। औदारिकशरीर स्वल्प पुद्गलों से निष्पन्न होता है और इसका परिणमन शिथिल एंव बादर रूप है। इसके अनन्तर बहुत और बहुतर पुद्गलपरमाणुओं से आगे-आगे के शरीर निष्पन्न होते हैं किन्तु उनका परिणमन सूक्ष्मसूक्ष्मतर होता जाता है। कार्मणशरीर इतना सूक्ष्म है कि उसको चर्मचक्षुओं से नहीं देखा जा सकता। परमावधिज्ञानी और केवलज्ञानी ही उसको जानते देखते हैं। उत्तरोत्तर परमाणुस्कन्धों की बहुलता के साथ इनकी सघनता भी क्रमशः अधिक-अधिक है। तैजस और कार्मणशरीर समस्त संसारी जीवों को प्राप्त होते हैं और इनका सम्बन्ध अनादिकालिक है। मुक्ति प्राप्त नहीं होने तक ये रहते हैं। इस प्रकार सामान्य रूप से औदारिक आदि शरीरों का निरूपण करके अब चौबीस दंडकवर्ती जीवों में उनका विचार करते हैं। चौबीस दंडकवर्ती जीवों की शरीरप्ररूपणा ४०६. णेरइयाणं भंते ! कति सरीरा पन्नत्ता ? गो० ! तयो सरीरा प० । तं०-वेउव्विए तेयए कम्मए । [४०६ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के कितने शरीर कहे गये हैं ? [४०६ उ.] गौतम! उनके तीन शरीर कहे गये हैं। वे इस प्रकार वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीर। ४०७. असुरकुमाराणं भंते ! कति सरीरा प० ? गो० ! तओ सरीरा पण्णत्ता । तं जहा—वेउव्विए तेयए कम्मए । एवं तिण्णि तिणि एते चेव सरीरा जाव थणियकुमाराणं भाणियव्वा । [४०७ प्र.] भगवन् ! असुरकुमारों के कितने शरीर होते हैं ? [४०७ उ.] गौतम! उनके तीन शरीर कहे हैं। यथा वैक्रिय, तैजस और कार्मण। इसी प्रकार यही तीनतीन शरीर स्तनितकुमार पर्यन्त सभी भवनपति देवों के जानना चाहिए। ४०८. (१) पुढवीकाइयाणं भंते ! कति सरीरा पण्णत्ता ? गो० ! तयो सरीरा पण्णत्ता । तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए । [४०८-१ प्र.] भगवन्! पृथ्वीकायिक जीवों के कितने शरीर होते हैं ? [४०८-१ उ.] गौतम! उनके तीन शरीर कहे गये हैं औदारिक, तैजस और कार्मण। (२) एवं आउ-तेउ-वणस्सइकाइयाण वि एते चेव तिण्णि सरीरा भाणियव्वा । [४०८-२] इसी प्रकार अप्कायिक, तेजस्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों के भी यही तीन-तीन शरीर जानना चाहिए। (३) वाउकाइयाणं जाव गो० ! चत्तारि सरीरा पन्नत्ता । तं०–ओरालिए वेउव्विए तेयए कम्मए । [४०८-३ प्र.] भगवन् ! वायुकायिक जीवों के कितने शरीर होते हैं ? [४०८-३ उ.] गौतम! वायुकायिक जीवों के चार शरीर होते हैं औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कर्मिण
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy