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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण २९१ [३८६-१ प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३८६-१ उ.] गौतम ! उनकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट स्थिति बारह वर्ष की है। अपर्याप्तक द्वीन्द्रिय जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। पर्याप्तक द्वीन्द्रिय जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्तन्यून बारह वर्ष की है। (२) तेइंदियाणं जाव गो० ! जहन्नेणं अंतो० उक्को० एकूणपण्णासं राइंदियाइं । अपज्जत्तय जाव गोतमा ! जह० अंतो० उक्कोसेणं अंतो० । पज्जत्तय जाव गो० ! जह० अंतो० उक्कोसेणं एकूणपण्णासं राइंदियाइं अंतोमुहुत्तूणाई । [३८६-२ प्र.] भगवन् ! त्रीन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३८६-२ उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट उनपचास (४९) दिन-रात्रि की होती है। अपर्याप्तक त्रीन्द्रिय जीवों की स्थिति जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। पर्याप्तक त्रीन्द्रिय जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त न्यून उनपचास दिन-रात्रि की होती है। [३] चउरिदियाणं जाव गो० ! जह० अंतो० उक्को० छम्मासा । अपजत्तय जाव गो० ! जह० अंतोमुहुत्तं उक्को० अंतो० । पजत्तयाणं जाव गो० ! जह० अंतो० उक्कोसेणं छम्मासा अंतोमुहुत्तूणा । [३८६-३ प्र.] भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की कही है ? [३८६-३ उ.] गौतम ! चतुरिन्द्रिय जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट छह मास की होती है। अपर्याप्तक चतुरिन्द्रिय जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की होती है। पर्याप्तक चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त प्रमाण और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त न्यून छह मास की होती है। विवेचन- ऊपर औधिक रूप में विकलेन्द्रियत्रिक द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीवों की और उनके पर्याप्त, अपर्याप्त भेदों की अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का प्रमाण बतलाया है। सामान्य से तथा अपर्याप्त जीवों की जघन्य स्थिति तो अन्तर्मुहूर्त प्रमाण ही होती है किन्तु पर्याप्त जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है और उत्कृष्ट स्थिति अपर्याप्त अवस्थाभावी अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थिति को कम करके शेष जानना चाहिए, जिसका दर्शक प्रारूप इस प्रकार हैनाम जघन्य स्थिति उत्कृष्ट स्थिति द्वीन्द्रिय अन्तर्मुहूर्त बारह वर्ष (अन्त. न्यून) त्रीन्द्रिय अन्तर्मुहूर्त उनपचास दिन (अन्त. न्यून) चतुरिन्द्रिय अन्तर्मुहूर्त छह मास (अन्त. न्यून)
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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