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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण २७१ [३६३ उ.] आयुष्मन् ! कालप्रमाण दो प्रकार का कहा गया है—१. प्रदेशनिष्पन्न, २. विभागनिष्पन्न । ३६४. से किं तं पदेसनिष्फण्णे ? पदेसनिप्फण्णे एगसमयट्ठितीए दुसमयट्ठितीए तिसमयट्ठितीए जाव दससमयद्वितीए संखेजसमयद्वितीए असंखेजसमयट्ठिईए । से तं पदेसनिप्फण्णे । [३६४ प्र.] भगवन् ! प्रदेशनिष्पन्न कालप्रमाण का क्या स्वरूप है ? [३६४ उ.] आयुष्मन् ! एक समय की स्थिति वाला, दो समय की स्थिति वाला, तीन समय की स्थिति वाला यावत् दस समय की स्थिति वाला, संख्यात समय की स्थिति वाला, असंख्यात समय की स्थिति वाला (परमाणु या स्कन्ध) प्रदेशनिष्पन्न कालप्रमाण है। इस प्रकार से प्रदेशनिष्पन्न (अर्थात् काल के निर्विभाग अंश से निष्पन्न) कालप्रमाण का स्वरूप जानना चाहिए। ३६५. से किं तं विभागनिष्फण्णे ? विभागनिष्फण्णे समयाऽऽवलिय-मुहत्ता दिवस-अहोरत्त-पक्ख मासा य । संवच्छर-जुग-पलिया सागर-ओसप्पि-परिअट्टा ॥ १०३॥ [३६५ प्र.] भगवन् ! विभागनिष्पन्न कालप्रमाण का क्या स्वरूप है ? [३६५ उ.] आयुष्मन् ! समय, आवलिका, मुहूर्त, दिवस, अहोरात्र, पक्ष, मास, संवत्सर, युग, पल्योपम, सागर, अवसर्पिणी (उत्सर्पिणी) और (पुद्गल) परावर्तन रूप काल को विभागनिष्पन्न कालप्रमाण कहते हैं । १०३ विवेचन- प्रस्तुत सूत्रों में कालप्रमाण के मुख्य दो भेदों का उल्लेख किया है। काल के निर्विभाग अंश (समय) को यहां प्रदेश कहा गया है। अतएव इन निर्विभाग अंशों—प्रदेशों से निष्पन्न होने वाला कालप्रमाण प्रदेशनिष्पन्न कालप्रमाण है। एक समय की स्थिति वाला परमाणु या स्कन्ध एक कालप्रदेश से, दो समय की स्थिति वाला परमाणु या स्कन्ध दो कालप्रदेशों से निष्पन्न होता है। इसी प्रकार तीन आदि समय से लेकर असंख्यात समय की स्थिति वाले परमाणु या स्कन्ध आदि सब काल के उतने-उतने ही अविभागी अंशों (प्रदेशों) से निष्पन्न होते हैं। असंख्यात अंशों (प्रदेशों) से असंख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गल निष्पन्न होते हैं। इससे आगे पुद्गलों की एक रूप से स्थिति ही नहीं होती है, अर्थात् पुद्गल पर्याय की अधिक से अधिक स्थिति असंख्यात काल की ही होती है। समय, आवलिका आदि रूप काल विभागात्मक होने से वे विभागनिष्पन्न कालप्रमाण कहलाते हैं। विभागनिष्पन्न कालप्रमाण की आद्य इकाई 'समय' है। अतः अब उसी का विस्तार से वर्णन किया जाता है। समयनिरूपण ३६६. से किं तं समए ? समयस्स णं परूवणं करिस्सामि से जहाणामए तुण्णागदारए सिया तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे अप्पातंके थिरग्गहत्थे दढपाणिपायपासपिटुंतरोरुपरिणते तलजमलजुयलपरिघणिभबाहू
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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