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प्रमाणाधिकारनिरूपण
उपाधिजन्य पदार्थों से यहां शरीर अभिप्रेत है। इसका माप उत्सेधांगुल द्वारा किया जाता है। शाश्वत पदार्थों की लम्बाई-चौड़ाई आदि प्रमाणांगुल के द्वारा मापी जाती है। जैसे नरकभूमियां शाश्वत हैं, उनकी लम्बाई-चौड़ाई में किंचिन्मात्र भी अन्तर नहीं आता, अतः प्रमाणांगुल का परिमाण भी सदैव एक जैसा रहता है।
प्रमाणांगुल के भेद, अल्पबहुत्व
३६१. से समासओ तिविहे पण्णत्ते । तं जहा सेढीअंगुले, पयरंगुले घणंगुले । असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ सेढी, सेढी सेढीए गुणिया पतरं, पतरं सेढीए गुणितं लोगो, संखेजएणं लोगो गुणितो संखेज्जा लोगा, असंखेज्जएणं लोगो गुणिओ असंखेज्जा लोगा ।
[३६१] वह (प्रमाणांगुल) संक्षेप में तीन प्रकार का कहा गया है – १. श्रेण्यंगुल, २. प्रतरांगुल, ३. घनांगुल । (प्रमाणांगुल से निष्पन्न) असंख्यात कोडाकोडी योजनों की एक श्रेणी होती है। श्रेणी को श्रेणी से गुणित करने पर प्रतरांगुल और प्रतरांगुल को श्रेणी के साथ गुणा करने से (एक) लोक होता है। संख्यात राशि से गुणित लोक 'संख्यातलोक', असंख्यात राशि से गुणित लोक 'असंख्यातलोक' और अनन्त राशि से गुणित लोक 'अनन्तलोक' कहलाता है ।
३६२. एतेसि णं सेढीअंगुल - पयरंगुल-घणंगुलाणं कतरे कतरेहिंतो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिए वा ।
सव्वत्थोवे सेढिअंगुले, पयरंगुले असंखेज्जगुणे, घणंगुले असंखेज्जगुणे । से तं माणगुले । से तं विभागनिष्फण्णे । से तं खेत्तप्पमाणे ।
[३६२ प्र.] भगवन् ! इन एयंगुल, प्रतरांगुल और घनांगुल में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ?
[ ३६२ उ.] आयुष्मन् ! श्रेण्यंगुल सर्वस्तोक (सबसे छोटा — अल्प ) है, उससे प्रतरांगुल असंख्यात गुणा है और प्रतरांगुल से घनांगुल असंख्यात गुणा है ।
इस प्रकार से प्रमाणांगुल की, साथ ही विभागनिष्पन्न क्षेत्रप्रमाण और क्षेत्रप्रमाण की वक्तव्यता पूर्ण हुई ।
विवेचन — प्रस्तुत में 'असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ सेढी' पद का यह आशय है कि जो योजन प्रमाणांगुल से निष्पन्न हो वही योजन यहां ग्रहण करना चाहिए और ऐसे प्रमाणांगुल से निष्पन्न योजन की असंख्यात कोडाकोडी संवर्तित चतुरस्त्रीकृत लोक की एक श्रेणी होती हैं । एक करोड़ को एक करोड़ से गुणा करने पर प्राप्त संख्या को कोडाकोडी कहते हैं
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यद्यपि सूत्र में घनांगुल के स्वरूप का संकेत नहीं किया है लेकिन यह पहले बताया जा चुका है कि घनांगुल से किसी भी वस्तु की लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई का परिमाण जाना जाता है। अतएव यहां घनीकृत लोक के उदाहरण द्वारा घनांगुल का स्वरूप स्पष्ट किया है।
लोक को घनाकार समचतुरस्र रूप करने की विधि इस प्रकार है— समग्र लोक ऊपर से नीचे तक चौदह राजू प्रमाण है । उसका विस्तार नीचे सात राजू, मध्य मे एक राजू, ब्रह्मलोक नामक पांचवें देवलोक तक के मध्य