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अनुयोगद्वारसूत्र
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३. ज्योतिष्क
अंगु.असं. भाग सात हाथ अंगु. सं. भाग एक लाख यो. ४. सौधर्म-ईशान
अंगु.असं. भाग सात हाथ .सं. भाग लाख यो. ५. सनत्कुमार-माहेन्द्र अंगु.असं. भाग छह हाथ .सं. भाग एक लाख यो.
ब्रह्मलोक-लान्तक अंगु.असं. भाग पांच हाथ .सं. भाग ____एक लाख यो. महाशुक्र-सहस्रार अंगु.असं. भाग चार हाथ सं. भाग
गि एक लाख यो. ८. आनत-प्राणत
अंगु.असं. भाग तीन हाथ सं. भाग ग एक लाख यो. आरण-अच्युत
अंगु.असं. भाग तीन हाथ 1.सं. भाग एक लाख यो. १०. ग्रैवेयक
अंगु.असं. भाग दो हाथ ११. अनुत्तर
अंगु.असं. भाग एक हाथ यह सर्व अवगाहना उत्सेधांगुल से मापी जाती है। उत्सेधांगुल के भेद और भेदों का अल्पबहुत्व
३५६. से समासओ तिवहे पण्णत्ते । तं जहा—सूईअंगुले पयरंगुले घणंगुले । अंगुलायता एगपदेसिया सेढी सूईअंगुले, सूई सूईए गुणिया पयरंगुले, पयरं सूईए गुणियं घणंगुले ।
[३५६] वह उत्सेधांगुल संक्षेप से तीन प्रकार का कहा गया है। यथा—सूच्यंगुल, प्रतरांगुल और घनांगुल।
एक अंगुल लम्बी तथा एक प्रदेश चौड़ी आकाशप्रदेशों की श्रेणी (पंक्ति रेखा) को सूच्यंगुल कहते हैं। सूची से सूची को गुणित करने पर प्रतरांगुल निष्पन्न होता है, सूच्यंगुल से गुणित प्रतरांगुल घनांगुल कहलाता है।'
३५७. एएसि णं सूचीअंगुल-पयरंगुल-घणंगुलाणं कतरे कतरेहितो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिए वा ।
सव्वत्थोवे सूईअंगुले, पयरंगुले असंखेजगुणे, घणंगुले असंखेजगुणे । से तं उस्सेहंगुले ।
[३५७ प्र.] भगवन् ! इन सूच्यंगुल, प्रतरांगुल और घनांगुल में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ?
[३५७ उ.] इनमें सर्वस्तोक (सबसे छोटा) सूच्यंगुल है, उससे प्रतरांगुल असंख्यातगुणा और प्रतरांगुल से घनांगुल असंख्यातगुणा है। - इस प्रकार यह उत्सेधांगुल का स्वरूप जानना चाहिए।
विवेचन— आत्मांगुल की तरह यह उत्सेधांगुल भी सूची, प्रतर और घन के भेद से तीन प्रकार का है। इनका स्वरूप तथा अल्पबहुत्व एवं अल्पबहुत्व के कारण को आत्मांगुलवत् समझ लेना चाहिए। प्रमाणांगुलनिरूपण
३५८. से किं तं पमाणंगुले ?
सूच्यंगुल में केवल लम्बाई का, प्रतरांगुल में लम्बाई और चौड़ाई का तथा घनांगुल में लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई-तीनों का ग्रहण होता है।